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अ॒ग्ने॒ शर्द्ध॑ मह॒ते सौभ॑गाय॒ तव॑ द्यु॒म्नान्यु॑त्त॒मानि॑ सन्तु। सं जा॑स्प॒त्यꣳ सु॒यम॒मा कृ॑णुष्व शत्रूय॒ताम॒भि ति॑ष्ठा॒ महा॑सि ॥१२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। शर्द्ध॑। म॒ह॒ते। सौभ॑गाय। तव॑। द्यु॒म्नानि॑। उ॒त्त॒मानीत्यु॑त्ऽत॒मानि॑। स॒न्तु॒ ॥ सम्। जा॒स्प॒त्यम्। जा॒स्प॒त्यमिति॑ जाःऽप॒त्य॑म्। सु॒यम॒मिति॑ सु॒ऽयम॑म्। आ। कृ॒णु॒ष्व॒। श॒त्रू॒य॒तामिति॑ शत्रूऽयताम्। अ॒भि। ति॒ष्ठ॒। महा॑सि ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् वा राजन् ! आप (महते) बड़े (सौभगाय) सौभाग्य के अर्थ (शर्द्ध) दुष्ट गुणों और शत्रुओं के नाशक बल को (आकृणुष्व) अच्छे प्रकार उन्नत कीजिये, जिससे (तव) आपके (द्युम्नानि) धन वा यश (उत्तमानि) श्रेष्ठ (सन्तु) हों, आप (जास्पत्यम्) स्त्री-पुरुष के भाव को (सुयमम्) सुन्दर नियमयुक्त शास्त्रानुकूल ब्रह्मचर्ययुक्त (सम्, आ) सम्यक् अच्छे प्रकार कीजिये और आप (शत्रूयताम्) शत्रु बनने की इच्छा करते हुए मनुष्यों के (महांसि) तेजों को (अभि, तिष्ठ) तिरस्कृत कीजिये ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - जो अच्छे संयम में रहनेवाले मनुष्य हैं, उनके बड़ा ऐश्वर्य, बल, कीर्ति, उत्तम स्वभाववाली स्त्री और शत्रुओं का पराजय होता है ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्भिः किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अग्ने) विद्वन् ! राजन् वा ! (शर्द्ध) दुष्टगुणशत्रुनाशकं बलम्। अत्र सुपां सुलग् [अ०७.१.३९] इति सोर्लुक्। शर्द्ध इति बलनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.९) (महते) (सौभगाय) शोभनैश्वर्यस्य भावाय (तव) (द्युम्नानि) धनानि यशांसि वा (उत्तमानि) श्रेष्ठानि (सन्तु) (सम्) (जास्पत्यम्) जायापतेर्भावं जास्पत्यम्। अत्र छान्दसो वर्णलोप इति यालोपः सुडागमश्च। (सुयमम्) सुष्ठु यमो नियमो यस्मिंस्तम् (आ) कृणुष्व) कुरुष्व (शत्रूयताम्) शत्रुत्वमिच्छताम् (अभि) (तिष्ठ) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अ०६.३.१३५] इति दीर्घः। (महांसि) तेजांसि ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वं महते सौभगाय शर्द्धाकृणुष्व यतस्तव द्युम्नान्युत्तमानि सन्तु, त्वं जास्पत्यं सुयमं समाकृणुष्व शत्रूयतां महांस्यभितिष्ठ ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - ये सुसंयमिनो मनुष्याः सन्ति तेषां महदैश्वर्यं बलं कीर्तिः सुशीला भार्या शत्रुपराजयश्च भवति ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक संयमी असतात त्यांना ऐश्वर्य, बल, कीर्ती, उत्तम स्वभावाची स्री प्राप्त होते व ते शत्रूंचा पराभव करू शकतात.