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ए॒षो ह॑ दे॒वः प्र॒दिशोऽ नु॒ सर्वाः॒ पूर्वो॑ ह जा॒तः सऽ उ॒ गर्भे॑ऽ अ॒न्तः। सऽ ए॒व जा॒तः स ज॑नि॒ष्यमा॑णः प्र॒त्यङ् जना॑स्तिष्ठति स॒र्वतो॑मुखः ॥४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒षः। ह॒। दे॒वः। प्र॒दिश॒ इति॑ प्र॒ऽदिशः॑। अनु॑। सर्वाः॑। पूर्वः॑। ह॒। जा॒तः। सः। उँ॒ऽइत्यूँ॑। गर्भे॑। अ॒न्तरित्य॒न्तः ॥ सः। ए॒व। जा॒तः। सः। ज॒नि॒ष्यमा॑णः। प्र॒त्यङ्। जनाः॑। ति॒ष्ठ॒ति॒। सर्वतो॑मुख इति॑ स॒र्वतः॑ऽमुखः ॥४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:32» मन्त्र:4


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जनाः) विद्वानो ! (एषः) यह (ह) प्रसिद्ध परमात्मा (देवः) उत्तम स्वरूप (सर्वाः) सब दिशा और (प्रदिशः) विदिशाओं को (अनु) अनुकूलता से व्याप्त होके (सः) (उ) वही (गर्भे) अन्तःकरण के (अन्तः) बीच (पूर्वः) प्रथम कल्प के आदि में (ह) प्रसिद्ध (जातः) प्रकटता को प्राप्त हुआ, (सः, एव) वही (जातः) प्रसिद्ध हुआ (सः) वह (जनिष्यमाणः) आगामी कल्पों में प्रथम प्रसिद्धि को प्राप्त होगा। (सर्वतोमुखः) सब ओर से मुखादि अवयवोंवाला अर्थात् मुखादि इन्द्रियों के काम सर्वत्र करता (प्रत्यङ्) प्रत्येक पदार्थ को प्राप्त हुआ (तिष्ठति) अचल सर्वत्र स्थिर है, वही तुम लोगों को उपासना करने और जानने योग्य है ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - यह पूर्वोक्त ईश्वर जगत् को उत्पन्न कर प्रकाशित हुआ सब दिशाओं में व्याप्त हो के इन्द्रियों के बिना सब इन्द्रियों के काम सर्वत्र व्याप्त होने से करता हुआ, सब प्राणियों के हृदय में स्थिर है, वह भूत, भविष्यत् कल्पों में जगत् की उत्पत्ति के लिये पहिले प्रकट होता है, वह ध्यानशील मनुष्य के जानने योग्य है, अन्य के जानने योग्य नहीं है ॥४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(एषः) परमात्मा। अत्र विभक्तेरलुक्। (ह) प्रसिद्धम् (देवः) दिव्यस्वरूपः (प्रदिशः) (अनु) आनुकूल्ये (सर्वाः) दिशश्च (पूर्वः) प्रथमः (ह) प्रसिद्धम् (जातः) प्राकट्यं प्राप्तः (सः) (उ) एव (गर्भे) अन्तःकरणे (अन्तः) मध्ये (सः) (एव) (जातः) प्रसिद्धः (सः) (जनिष्यमाणः) प्रसिद्धिं प्राप्स्यमानः (प्रत्यङ्) प्रतिपदार्थमञ्चति प्राप्नोति (जनाः) विद्वांसः (तिष्ठति) वर्त्तते (सर्वतोमुखः) सर्वतो मुखाद्यवयवा यस्य सः ॥४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जनाः ! एषो ह देवः सर्वाः प्रदिशोऽनुव्याप्य स उ गर्भेऽन्तः पूर्वो ह जातः स एव जातः स जनिष्यमाणः सर्वतोमुखः प्रत्यङ् तिष्ठति स युष्माभिरुपासनीयो वेदितव्यश्च ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - अयं पूर्वोक्त ईश्वरो जगदुत्पाद्य प्रकाशितः सन् सर्वासु दिक्षु व्याप्येन्द्रियाण्यन्तरेण सर्वेन्द्रियकर्माणि सर्वगतत्वेन कुर्वन् सर्वप्राणिनां हृदये तिष्ठति सोऽतीतानागतेषु कल्पेषु जगदुत्पादनाय पूर्वं प्रकटो भवति स ध्यानशीलेन मनुष्येण ज्ञातव्यो नान्येनेति भावः ॥४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - वरीलप्रमाणे ईश्वर जगाला उत्पन्न करून प्रकट झालेला आहे. ईश्वर सर्व दिशामध्ये व्याप्त असून, इंद्रियांशिवाय सर्व इंद्रियांची कामे करतो. तो प्राण्यांच्या हृदयामध्ये स्थित असतो. तो भूत, भविष्य कल्पामध्ये जगाच्या उत्पत्तीसाठी प्रथम प्रकट होतो. ध्यान करणाऱ्या माणसांना तो जाणता येतो. इतर लोक त्याला जाणू शकत नाहीत.