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यां मे॒धां दे॑वग॒णाः पि॒तर॑श्चो॒पास॑ते। तया॒ माम॒द्य मे॒धयाऽग्ने॑ मे॒धावि॑नं कुरु॒ स्वाहा॑ ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याम्। मे॒धाम्। दे॒व॒ग॒णा इति॑ देवऽग॒णाः। पि॒तरः॑। च॒। उ॒पास॑ते॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते ॥ तया॑। माम्। अ॒द्य। मे॒धया॑। अग्ने॑ मे॒धावि॑नम्। कु॒रु॒। स्वाहा॑ ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:32» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को ईश्वर से बुद्धि की याचना करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) स्वयं प्रकाशरूप होने से विद्या के जतानेहारे ईश्वर ! वा अध्यापक विद्वन् ! (देवगणाः) अनेक विद्वान् (च) और (पितरः) रक्षा करनेहारे ज्ञानी लोग (याम्) जिस (मेधाम्) बुद्धि वा धन को (उपासते) प्राप्त होके सेवन करते हैं, (तया) उस (मेधया) बुद्धि वा धन से (माम्) मुझको (अद्य) आज (स्वाहा) सत्य वाणी से (मेधाविनम्) प्रशंसित बुद्धि वा धनवाला (कुरु) कीजिये ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग परमेश्वर की उपासना और आप्त विद्वान् की सम्यक् सेवा करके शुद्ध विज्ञान और धर्म से हुए धन को प्राप्त होने की इच्छा करें और दूसरों को भी ऐसे ही प्राप्त करावें ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैरीश्वराद् बुद्धिर्याचनीयेत्याह ॥

अन्वय:

(याम्) (मेधाम्) प्रज्ञां धनं वा। मेधेति धनना० ॥ (निघं०२.१०) (देवगणाः) देवानां विदुषां समूहाः (पितरः) पालयितारो विज्ञानिनः (च) (उपासते) प्राप्य सेवन्ते (तया) (माम्) (अद्य) (मेधया) (अग्ने) स्वप्रकाशत्वेन विद्याविज्ञापक ! (मेधाविनम्) प्रशस्ता मेधा विद्यते यस्य तम् (कुरु) (स्वाहा) सत्यया वाचा ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने विद्वन्नध्यापक ! जगदीश्वर वा ! देवगणाः पितरश्च यां मेधामुपासते तया मेधया मामद्य स्वाहा मेधाविनं कुरु ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्याः परमेश्वरमुपास्याप्तं विद्वासं संसेव्य शुद्धं विज्ञानं धर्मजं धनञ्च प्राप्तुमिच्छेयुरन्यांश्चैवं प्रापयेयुः ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी परमेश्वराची उपासना व आप्त विद्वान लोकांची सेवा करून शुद्ध विज्ञान व धर्माने धन प्राप्त करण्याची इच्छा बाळगावी व इतरांना तसे प्राप्त करण्यास प्रवृत्त करावे.