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तदे॒वाग्निस्तदा॑दि॒त्यस्तद्वा॒युस्तदु॑ च॒न्द्रमाः॑। तदे॒व शु॒क्रं तद् ब्रह्म॒ ताऽआपः॒ स प्र॒जाप॑तिः ॥१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। ए॒व। अ॒ग्निः। तत्। आ॒दि॒त्यः। तत्। वा॒युः। तत्। ऊँ॒ इत्यूँ॑। च॒न्द्रमाः॑ ॥ तत्। ए॒व। शु॒क्रम्। तत्। ब्रह्म॑। ताः। आपः॑। सः। प्र॒जाप॑ति॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तिः ॥१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:32» मन्त्र:1


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब परमेश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (तत्) वह सर्वज्ञ, सर्वव्यापि, सनातन, अनादि, सच्चिदानन्दस्वरूप, नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्तस्वभाव, न्यायकारी, दयालु, जगत् का स्रष्टा, धारणकर्त्ता और सबका अन्तर्यामी (एव) ही (अग्निः) ज्ञानस्वरूप और स्वयं प्रकाशित होने से अग्नि (तत्) वह (आदित्यः) प्रलय समय सबको ग्रहण करने से आदित्य (तत्) वह (वायुः) अनन्त बलवान् और सबका धर्ता होने से वायु (तत्) वह (चन्द्रमाः) आनन्द स्वरूप और आनन्दकारक होने से चन्द्रमा (तत्, एव) वही (शुक्रम्) शीघ्रकारी वा शुद्ध भाव से शुक्र (तत्) वह (ब्रह्म) महान् होने से ब्रह्म (ताः) वह (आपः) सर्वत्र व्यापक होने से आप (उ) और (सः) वह (प्रजापतिः) सब प्रजा का स्वामी होने से प्रजापति है, ऐसा तुम लोग जानो ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे ईश्वर के ये अग्नि आदि गौण नाम हैं, वैसे और भी इन्द्रादि नाम हैं, उसी की उपासना फलवाली है, ऐसा जानो ॥१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ परमेश्वरः कीदृश इत्याह ॥

अन्वय:

(तत्) सर्वज्ञं सर्वव्यापि सनातनमनादि सच्चिदानन्दस्वरूपं नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभावं न्यायकारि-दयालु-जगत्स्रष्टृ-जगद्धर्त्तृ-सर्वान्तर्यामि (एव) निश्चये (अग्निः) ज्ञानस्वरूपत्वात् स्वप्रकाशत्वाच्च (तत्) (आदित्यः) प्रलये सर्वस्यादातृत्वात् (तत्) (वायुः) अनन्तबलत्वसर्वधर्तृत्वाभ्याम् (तत्) (उ) (चन्द्रमाः) आनन्दस्वरूपत्वादाह्लादकत्वाच्च (तत्) (एव) (शुक्रम्) आशुकारित्वाच्छुद्धभावाच्च (तत्) (ब्रह्म) सर्वेभ्यो महत्त्वात् (ताः) (आपः) सर्वत्र व्यापकत्वात् (सः) (प्रजापतिः) सर्वस्याः प्रजायाः स्वामित्वात् ॥१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यास्तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायुस्तच्चन्द्रमास्तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म ता आपः स उ प्रजापतिरस्त्येवं यूयं विजानीत ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यथेश्वरस्येमान्यग्न्यादीनि गौणिकानि नामानि सन्ति तथान्यानीन्द्रादीन्यपि वर्त्तन्ते। अस्यैवोपासना फलवती भवतीति वेद्यम् ॥१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - - हे माणासांनो । ज्या पूर्ण परमेश्वरामध्ये सर्व माणसांची असंख्य मस्तके, नेत्र, पाय इत्यादी आहेत व जो आपल्या सामर्थ्याने भूमी वगैरे पाच स्थूल व पाच सूक्ष्म भूतांनी युक्त अशा जगाला परिपूर्ण करतो आणि जेथे सृष्टी नाही तेथेही तो सृष्टिनिर्माता परिपूर्ण असतो. असा सच्चिदानंद स्वरूप, नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त स्वभाव असलेल्या परमेश्वराला सोडून तुम्ही इतर कुणाचीही उपासना करू नका. परमेश्वराची उपासना करुन धर्म, अर्थ, काम, मोक्षाची प्राप्ती करा. ॥