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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुमको चाहिये कि (तस्मात्) उस पूर्ण (यज्ञात्) अत्यन्त पूजनीय (सर्वहुतः) जिसके अर्थ सब लोग समस्त पदार्थों को देते वा समर्पण करते उस परमात्मा से (ऋचः) ऋग्वेद (सामानि) सामवेद (जज्ञिरे) उत्पन्न होते (तस्मात्) उस परमात्मा से (छन्दांसि) अथर्ववेद (जज्ञिरे) उत्पन्न होता और (तस्मात्) उस पुरुष से (यजुः) यजुर्वेद (अजायत) उत्पन्न होता है, उसको जानो ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग जिससे सब वेद उत्पन्न हुए हैं, उस परमात्मा की उपासना करो, वेदों को पढ़ो और उसकी आज्ञा के अनुकूल वर्त्त के सुखी होओ ॥७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(तस्मात्) पूर्णात् (यज्ञात्) पूजनीयतमात् (सर्वहुतः) सर्वे जुह्वति सर्वं समर्पयन्ति वा यस्मै (ऋचः) ऋग्वेदः (सामानि) सामवेदः (जज्ञिरे) जायन्ते (छन्दांसि) अथर्ववेदः (जज्ञिरे) (तस्मात्) परमात्मनः (यजुः) यजुर्वेदः (तस्मात्) (अजायत) जायते ॥७ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! युष्माभिस्तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः परमात्मन ऋचः सामानि जज्ञिरे तस्माच्छन्दासि जज्ञिरे तस्माद्यजुरजायत स विज्ञातव्यः ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! भवन्तो यस्मात् सर्वे वेदा जायन्ते तं परमात्मानमुपासीरन् वेदाँश्चाधीयीरन् तदाज्ञानुकूलं च वर्त्तित्वा सुखिनो भवन्तु ॥७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्याच्यापासून सर्व वेद उत्पन्न झलेले आहेत त्या परमेश्वराची उपासना करा व वेदांचे अध्ययन करा. वेदातील आज्ञेप्रमाणे वागून सुखी व्हा.