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प्र॒जाप॑तिश्च॒रति॒ गर्भे॑ऽअ॒न्तरजा॑यमानो बहु॒धा वि जा॑यते। तस्य॒ योनिं॒ परि॑ पश्यन्ति॒ धीरा॒स्तस्मि॑न् ह तस्थु॒र्भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र॒जाप॑ति॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तिः। च॒र॒ति॒। गर्भे॑। अ॒न्तः। अजा॑यमानः। ब॒हु॒धा। वि। जा॒य॒ते॒ ॥ तस्य॑। योनि॑म्। परि॑। प॒श्य॒न्ति॒। धीराः॑। तस्मि॑न्। ह॒। त॒स्थुः॒। भुव॑नानि। विश्वा॑ ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:31» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर ईश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अजायमानः) अपने स्वरूप से उत्पन्न नहीं होनेवाला (प्रजापतिः) प्रजा का रक्षक जगदीश्वर (गर्भे) गर्भस्थ जीवात्मा और (अन्तः) सबके हृदय में (चरति) विचरता है और (बहुधा) बहुत प्रकारों से (वि, जायते) विशेषकर प्रकट होता (तस्य) उस प्रजापति के जिस (योनिम्) स्वरूप को (धीराः) ध्यानशील विद्वान् जन (परि, पश्यन्ति) सब ओर से देखते हैं (तस्मिन्) उसमें (ह) प्रसिद्ध (विश्वा) सब (भुवनानि) लोक-लोकान्तर (तस्थुः) स्थित हैं ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - जो यह सर्वरक्षक ईश्वर आप उत्पन्न न होता हुआ अपने सामर्थ्य से जगत् को उत्पन्न कर और उसमें प्रविष्ट होके सर्वत्र विचरता है, जिस अनेक प्रकार से प्रसिद्ध ईश्वर को विद्वान् लोग ही जानते हैं, उस जगत् के आधाररूप सर्वव्यापक परमात्मा को जान के मनुष्यों को आनन्द भोगना चाहिये ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरीश्वरः कीदृश इत्याह ॥

अन्वय:

(प्रजापतिः) प्रजापालको जगदीश्वरः (चरति) (गर्भे) गर्भस्थे जीवात्मनि (अन्तः) हृदि (अजायमानः) स्वस्वरूपेणानुत्पन्नः सन् (बहुधा) बहुप्रकारैः (वि) विशेषेण (जायते) प्रकटो भवति (तस्य) प्रजापतेः (योनिम्) स्वरूपम् (परि) सर्वतः (पश्यन्ति) प्रेक्षन्ते (धीराः) ध्यानवन्तः (तस्मिन्) जगदीश्वरे (ह) प्रसिद्धम् (तस्थुः) तिष्ठन्ति (भुवनानि) भवन्ति येषु तानि लोकजातानि (विश्वा) सर्वाणि ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! योऽजायमानः प्रजापतिर्गर्भेऽन्तश्चरति बहुधा विजायते तस्य यं योनिं धीराः परिपश्यन्ति तस्मिन् ह विश्वा भुवनानि तस्थुः ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - योऽयं सर्वरक्षक ईश्वरः स्वयमनुत्पन्नः सन् स्वसामर्थ्याज्जगदुत्पाद्य तत्रान्तः प्रविश्य सर्वत्र विचरति यमनेकप्रकारेण प्रसिद्धं विद्वांस एव जानन्ति तं जगदधिकरणं सर्वव्यापकं परमात्मानं विज्ञाय मनुष्यैरानन्दितव्यम् ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्वरक्षक ईश्वर स्वतः उत्पन्न न होता आपल्या सामर्थ्याने जगाला उत्पन्न करतो व त्यात स्थित होऊन सर्वत्र संचार करतो. अनेक प्रकारे प्रकट असलेल्या त्या परमेश्वराला विद्वान लोकच जाणतात. तेव्हा जगाचा अधिष्ठाता व सर्वव्यापक असणाऱ्या परमेश्वराला जाणून माणसांनी आनंद प्राप्त करावा.