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अ॒द्भ्यः सम्भृ॑तः पृथि॒व्यै रसा॑च्च वि॒श्वक॑र्मणः॒ सम॑वर्त्त॒ताग्रे॑। तस्य॒ त्वष्टा॑ वि॒दध॑द् रू॒पमे॑ति॒ तन्मर्त्य॑स्य देव॒त्वमा॒जान॒मग्रे॑ ॥१७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒द्भ्य इत्य॒त्ऽभ्यः। सम्भृ॑त॒ इति॑ सम्ऽभृ॑तः। पृ॒थि॒व्यै। रसा॑त्। च॒। वि॒श्वक॑र्मण॒ इति॑ वि॒श्वऽक॑र्मणः। सम्। अ॒व॒र्त्त॒त॒। अग्रे॑ ॥ तस्य॑। त्वष्टा॑। विदध॑दिति॑ वि॒ऽदध॑त्। रू॒पम्। ए॒ति॒। तत्। मर्त्य॑स्य। दे॒व॒त्वमिति॑ देव॒ऽत्वम्। आ॒जान॒मित्या॒ऽजान॑म्। अग्रे॑ ॥१७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:31» मन्त्र:17


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अद्भ्यः) जलों (पृथिव्यै) पृथिवी (च) और (विश्वकर्मणः) सब कर्म जिसके आश्रय से होते उस सूर्य से (सम्भृतः) सम्यक् पुष्ट हुआ उस (रसात्) रस से (अग्रे) पहिले यह सब जगत् (सम्, अवर्त्तत) वर्त्तमान होता है (तस्य) उस इस जगत् के (तत्) उस (रूपम्) स्वरूप को (त्वष्टा) सूक्ष्म करनेवाला ईश्वर (विदधत्) विधान करता हुआ (अग्रे) आदि में (मर्त्यस्य) मनुष्य के (आजानम्) अच्छे प्रकार कर्त्तव्य कर्म और (देवत्वम्) विद्वत्ता को (एति) प्राप्त होता है ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो सम्पूर्ण कार्य करने हारा परमेश्वर कारण से कार्य बनाता है, सब जगत् के शरीरों के रूपों को बनाता है, उसका ज्ञान और उसकी आज्ञा का पालन ही देवत्व है, ऐसा जानो ॥१७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अद्भ्यः) जलेभ्यः (सम्भृतः) सम्यक् पुष्टः (पृथिव्यै) पृथिव्याः। अत्र पञ्चम्यर्थे चतुर्थी (रसात्) जिह्वाविषयात् (च) (विश्वकर्मणः) विश्वानि सर्वाणि सत्यानि कर्माणि यस्याश्रयेण तस्मात् सूर्य्यात् (सम्) (अवर्त्तत) (अग्रे) प्राक् (तस्य) (त्वष्टा) तनूकर्त्ता (विदधत्) विधानं कुर्वन् (रूपम्) स्वरूपम् (एति) (तत्) (मर्त्यस्य) मनुष्यस्य (देवत्वम्) विद्वत्त्वम् (आजानम्) समन्ताज्जनानां मनुष्याणामिदं कर्त्तव्यं कर्म (अग्रे) आदितः ॥१७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! योऽद्भ्यः पृथिव्यै विश्वकर्मणश्च सम्भृतस्तस्माद् रसादग्र इदं सर्वं समवर्त्तत तस्याऽस्य जगतो तद् रूपं त्वष्टा विदधदग्रे मर्त्यस्याजानं देवत्वमेति ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! योऽखिलकार्यकर्त्ता परमात्मा कारणात् कार्याणि निर्मिमीते सकलस्य जगतः शरीराणां रूपाणि विदधाति तज्ज्ञानं तदाज्ञापालनमेव देवत्वमस्तीति जानीत ॥१७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! पूर्ण कर्मशील परमेश्वर कारणापासून कार्याची निर्मिती करतो व सर्व जगतरूपी शरीराचे अवयव (सृष्टितील पदार्थ) निर्माण करतो त्याच्यासंबंधी ज्ञान मिळविणे व त्याच्या आज्ञेचे पालन करणे हेच देवत्व होय.