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नृ॒त्ताय॑ सू॒तं गी॒ताय॑ शैलू॒षं धर्मा॑य सभाच॒रं न॒रिष्ठा॑यै भीम॒लं न॒र्माय॑ रे॒भꣳ हसा॑य॒ कारि॑मान॒न्दाय॑ स्त्रीष॒खं प्र॒मदे॑ कुमारीपु॒त्रं मे॒धायै॑ रथका॒रं धैर्य्या॑य॒ तक्षा॑णम् ॥६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नृ॒त्ताय॑। सू॒त॒म्। गी॒ताय॑। शै॒लू॒षम्। धर्मा॑य। स॒भा॒च॒रमिति॑ सभाऽच॒रम्। न॒रिष्ठा॑यै। भी॒म॒लम्। न॒र्माय॑। रे॒भम्। हसा॑य। कारि॑म्। आ॒न॒न्दायेत्या॑न॒न्दाय॑। स्त्री॒ष॒ख॒म्। स्त्री॒स॒खमिति॑ स्त्रीऽस॒खम्। प्र॒मद॒ इति॑ प्र॒ऽमदे॑। कु॒मा॒री॑पु॒त्रमिति॑ कुमारीऽपु॒त्रम्। मे॒धायै॑। र॒थ॒का॒रमिति॑ रथऽका॒रम्। धैर्य्या॑य। तक्षा॑णम् ॥६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:30» मन्त्र:6


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजपुरुषों को क्या करना चाहिए इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! वा राजन् ! आप (नृत्ताय) नाचने के लिए (सूतम्) क्षत्रिय से ब्राह्मणी में उत्पन्न हुए सूत को (गीताय) गाने के अर्थ (शैलूषम्) गाने हारे नट को (धर्माय) धर्म की रक्षा के लिए (सभाचरम्) सभा में विचरने हारे सभापति को (नर्माय) कोमलता के अर्थ (रेभम्) स्तुति करनेहारे को (आनन्दाय) आनन्द भोगने के अर्थ (स्त्रीषखम्) स्त्री से मित्रता रखनेवाले पति को (मेधायै) बुद्धि के लिए (रथकारम्) विमानादि को रचनेहारे कारीगर को (धैर्याय) धीरज के लिए (तक्षाणम्) महीन काम करनेवाले बढ़ई को उत्पन्न कीजिए (नरिष्ठायै) अति दुष्ट नरों की गोष्ठी के लिए प्रवृत्त हुए (भीमलम्) भयंकर विषयों को ग्रहण करनेवाले को (हसाय) हंसने के अर्थ प्रवृत्त हुए (कारिम्) उपहासकर्त्ता को और (प्रमदे) प्रमाद के लिए प्रवृत्त हुए (कुमारीपुत्रम्) विवाह से पहिले व्यभिचार से उत्पन्न हुए को दूर कर दीजिए ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों को चाहिए कि परमेश्वर के उपदेश और राजा की आज्ञा से सब श्रेष्ठ धर्मात्मा जनों को उत्साह दें, हंसी करने और भय देनेवालों को निवृत्त करें, अनेक सभाओं को बना के सब व्यवस्था और शिल्पविद्या की उन्नति किया करें ॥६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजपुरुषैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(नृत्ताय) नृत्याय (सूतम्) क्षत्रियाद् ब्राह्मण्यां जातम् (गीताय) गानाय (शैलूषम्) गायनम् (धर्माय) धर्मरक्षणाय (सभाचरम्) यः सभायां चरति तम् (नरिष्ठायै) अतिशयिता दुष्टा नराः सन्ति यस्यां तस्यै प्रवृत्तम् (भीमलम्) यो भीमान् भयङ्करान् लात्याददाति तम् (नर्माय) कोमलत्वाय (रेभम्) स्तोतारम्। रेभ इति स्तोतृनामसु पठितम् ॥ (निघ०३.१६) (हसाय) हसनाय प्रवृत्तम् (कारिम्) उपहासकर्त्तारम् (आनन्दाय) (स्त्रीषखम्) स्त्रियां मित्रं पतिम् (प्रमदे) प्रमादाय प्रवृत्तम् (कुमारीपुत्रम्) विवाहात् पूर्वं व्यभिचारेणोत्पन्नम् (मेधायै) प्रज्ञायै (रथकारम्) विमानादिरचकं शिल्पिनम् (धैर्याय) (तक्षाणम्) तनूकर्त्तारम् ॥६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर राजन् वा ! त्वं नृत्ताय सूतं गीताय शैलूषं धर्माय सभाचरं नर्माय रेभमानन्दाय स्त्रीषखं मेधायै रथकारं धैर्याय तक्षाणमासुव, नरिष्ठायै भीमलं हसाय कारिं प्रमदे कुमारीपुत्रं परासुव ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषैः परमेश्वरोपदेशेन राजाज्ञया च सर्वे श्रेष्ठा धार्मिका जना उत्साहनीया हास्यभयप्रदा निवारणीया अनेकाः सभा निर्माय सर्वा व्यवस्थाः शिल्पविद्योन्नतिश्च कार्य्या ॥६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांनी परमेश्वराला उपदेश स्मरून व राजाची आज्ञा पाळून श्रेष्ठ व धार्मिक लोकांचा उत्साह वाढवावा. जे लोक चेष्टा करतात, भयभीत करतात, त्यांना दूर करावे. निरनिराळ्या सभा बनवाव्या व व्यवस्था ठेवावी आणि हस्तकला (शिल्पविद्या) समृद्ध करावी.