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प्र॒घा॒सिनो॑ हवामहे म॒रुत॑श्च रि॒शाद॑सः। क॒र॒म्भेण॑ स॒जोष॑सः ॥४४॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र॒घा॒सिन॒ इति॑ प्रऽघा॒सिनः॑। ह॒वाम॒हे॒। म॒रुतः॑। च॒। रि॒शाद॑सः। क॒र॒म्भेण॑। स॒जोष॑स॒ इति॑ स॒ऽजोष॑सः ॥४४॥

यजुर्वेद » अध्याय:3» मन्त्र:44


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

गृहस्थ मनुष्यों को क्या-क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग (करम्भेण) अविद्यारूपी दुःख से अलग होके (सजोषसः) बराबर प्रीति के सेवन करने (रिशादसः) दोष वा शत्रुओं को नष्ट करने (प्रघासिनः) पके हुए पदार्थों के भोजन करनेवाले अतिथि लोग और (मरुतः) अतिथि (च) और यज्ञ करनेवाले विद्वान् लोगों को (हवामहे) सत्कारपूर्वक नित्यप्रति बुलाते रहें ॥४४॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थों को उचित है कि वैद्य, शूरवीर और यज्ञ को सिद्ध करनेवाले मनुष्यों को बुलाकर उनकी यथावत् सत्कारपूर्वक सेवा करके उनसे उत्तम-उत्तम विद्या वा शिक्षाओं को निरन्तर ग्रहण करें ॥४४॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्गृहस्थैः किं कर्तव्यमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(प्रघासिनः) प्रघस्तुमत्तुं शीलमेषां तान् (हवामहे) आह्वयामहे (मरुतः) विदुषोऽतिथीन् (च) समुच्चये (रिशादसः) रिशान् दोषान् शत्रूंश्चादन्ति हिंसन्ति तान् (करम्भेण) अविद्याहिंसनेन। अत्र ‘कृ हिंसायाम्’ इत्यस्माद् धातोर्बाहुलकादौणादिकोऽभच् प्रत्ययः। (सजोषसः) समानप्रीतिसेविनः। अयं मन्त्रः (शत०२.५.२.२१) व्याख्यातः ॥४४॥

पदार्थान्वयभाषाः - वयं करम्भेण सजोषसो रिशादसः प्रघासिनोऽतिथीन् मरुत ऋत्विजश्च हवामहे ॥४४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्वैद्यान् शूरवीरान् यज्ञसंपादकान् मनुष्यानाहूय सेवित्वा तेभ्यो विद्याशिक्षा नित्यं संग्राह्याः ॥४४॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - गृहस्थांनी वैद्य, वीर पुरुष व याज्ञिकांना आमंत्रित करून त्यांचा यथायोग्य सत्कार केला पाहिजे व सेवा केली पाहिजे आणि त्यांच्याकडून सदैव उत्तम प्रकारची विद्या प्राप्त केली पाहिजे.