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ते हि पु॒त्रासो॒ऽअदि॑तेः॒ प्र जी॒वसे॒ मर्त्या॑य। ज्योति॒र्यच्छ॒न्त्यज॑स्रम् ॥३३॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते। हि। पु॒त्रासः॑। अदि॑तेः। प्र। जी॒वसे॑। मर्त्या॑य। ज्योतिः॑। यच्छ॑न्ति। अज॑स्रम् ॥३३॥

यजुर्वेद » अध्याय:3» मन्त्र:33


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

आदित्यों के क्या-क्या कर्म हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (अदितेः) नाशरहित कारणरूपी शक्ति के (पुत्रासः) बाहिर भीतर रहनेवाले प्राण, सूर्यलोक, पवन और जल आदि पुत्र हैं (ते) वे (हि) ही (मर्त्याय) मनुष्यों के मरने वा (जीवसे) जीने के लिये (अजस्रम्) निरन्तर (ज्योतिः) तेज या प्रकाश को (यच्छन्ति) देते हैं ॥३३॥
भावार्थभाषाः - जो ये कारणरूपी समर्थ पदार्थों के उत्पन्न हुए प्राण, सूर्यलोक, वायु वा जल आदि पदार्थ हैं, वे ज्योति अर्थात् तेज को देते हुए सब प्राणियों के जीवन वा मरने के लिये निमित्त होते हैं ॥३३॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

आदित्यानां किं कर्मास्तीत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(ते) पूर्वोक्ताः (हि) निश्चये (पुत्रासः) मित्रार्यमवरुणाः (अदितेः) अखण्डितायाः कारणशक्तेः (प्र) प्रकृष्टार्थे (जीवसे) जीवितुम् (मर्त्याय) मनुष्याय (ज्योतिः) तेजः (यच्छन्ति) ददति (अजस्रम्) निरन्तरम्। अयं मन्त्रः (शत०२.३.४.३७) व्याख्यातः ॥३३॥

पदार्थान्वयभाषाः - येऽदितेः पुत्रासः पुत्रास्ते हि मर्त्याय जीवसेऽजस्रं ज्योतिः प्रयच्छन्ति ॥३३॥
भावार्थभाषाः - एते कारणादुत्पन्नाः प्राणवाय्वादयो नित्यं ज्योतिः प्रयच्छन्तः सर्वेषां जीवनाय मरणाय वा निमित्तानि भवन्तीति ॥३३॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी कारणरूपी अनादी शक्ती (प्रकृती) आहे तिच्यापासून प्राण, वायू व जल इत्यादी पदार्थ उत्पन्न झालेले आहेत. ते माणसांना तेजस्वी बनवितात व जीवन आणि मृत्यूचे निमित्त बनतात.