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स नः॑ पि॒तेव॑ सू॒नवेऽग्ने॑ सूपाय॒नो भ॑व। सच॑स्वा नः स्व॒स्तये॑ ॥२४॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। नः॒। पि॒तेवेति॑ पि॒ताऽइ॑व। सू॒नवे॑। अग्ने॑। सू॒पा॒य॒न इति॑ सुऽउ॒पा॒य॒नः। भ॒व॒। सच॑स्व। नः॒। स्व॒स्तये॑ ॥२४॥

यजुर्वेद » अध्याय:3» मन्त्र:24


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में ईश्वर ही का उपदेश किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) जगदीश्वर ! जो आप कृपा करके जैसे (सूनवे) अपने पुत्र के लिये (पितेव) पिता अच्छे-अच्छे गुणों को सिखलाता है, वैसे (नः) हमारे लिये (सूपायनः) श्रेष्ठ ज्ञान के देनेवाले (भव) हैं, वैसे (सः) सो आप (नः) हम लोगों को (स्वस्तये) सुख के लिये निरन्तर (सचस्व) संयुक्त कीजिये ॥२४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे सब के पालन करनेवाले परमेश्वर ! जैसे कृपा करनेवाला कोई विद्वान् मनुष्य अपने पुत्रों की रक्षा कर श्रेष्ठ-श्रेष्ठ शिक्षा देकर विद्या, धर्म अच्छे-अच्छे स्वभाव और सत्य विद्या आदि गुणों में संयुक्त करता है, वैसे ही आप हम लोगों की निरन्तर रक्षा करके श्रेष्ठ-श्रेष्ठ व्यवहारों में संयुक्त कीजिये ॥२४॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्रिमेण मन्त्रेणेश्वर एवोपदिश्यते ॥

अन्वय:

(सः) जगदीश्वरः (नः) अस्मभ्यम् (पितेव) जनक इव (सूनवे) औरसाय सन्तानाय। सूनुरित्यपत्यनामसु पठितम्। (निघं०२.२) (अग्ने) करुणामय विज्ञानस्वरूप सर्वपितः। (सूपायनः) सुष्ठूपगतमयनं ज्ञानं प्रापणं यस्मात् सः (भव) भवसि। अत्र लडर्थे लोट् (सचस्व) संयोजय। अन्येषामपि दृश्यते [अष्टा०६.३.१३७] इति दीर्घः। (नः) अस्मान् (स्वस्तये) सुखाय। अयं मन्त्रः (शत०२.३.४.३०) व्याख्यातः ॥२४॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने जगदीश्वर ! यस्त्वं कृपया सूनवे पितेव नोऽस्मभ्यं सूपायनो भवसि, स त्वं नोऽस्मान् स्वस्तये सततं सचस्व संयोजय ॥२४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे सर्वपितरीश्वर ! यथा कृपायमाणो विद्वान् पिता स्वसन्तानान् संरक्ष्य सुशिक्ष्य च विद्याधर्मसुशीलतादिषु संयोजयति, तथैव भवानस्मान् निरन्तरं रक्षित्वा श्रेष्ठेषु व्यवहारेषु संयोजयत्विति ॥२४॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे सर्वांचे पालन करणाऱ्या ईश्वरा ! एखादा विद्वान आपल्या पुत्रावर कृपादृष्टी ठेवतो व त्याचे रक्षण करतो. त्याला श्रेष्ठ शिक्षण देऊन सत्यविद्या, धर्म इत्यादी चांगले गुण शिकवितो तसेच तूही आमचे निरंतर रक्षण करून आम्हाला श्रेष्ठ कर्मात प्रवृत्त कर.