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आ ज॑ङ्घन्ति॒ सान्वे॑षां ज॒घनाँ॒२ऽउप॑ जिघ्नते। अश्वा॑जनि॒ प्रचे॑त॒सोऽश्वा॑न्त्स॒मत्सु॑ चोदय ॥५० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। ज॒ङ्घ॒न्ति॒। सानु॑। ए॒षा॒म्। ज॒घना॑न्। उप॑। जि॒घ्न॒ते॒। अश्वा॑ज॒नीत्यश्व॑ऽजनि। प्रचे॑तस॒ इति॒ प्रऽचे॑तसः। अश्वा॑न्। स॒मत्स्विति॑ स॒मत्ऽसु॑। चो॒द॒य॒ ॥५० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:50


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजधर्म को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्वाजनि) घोड़ों को शिक्षा देनेवाली विदुषि राणी ! जैसे वीर पुरुष (एषाम्) इन घोड़े आदि के (सानु) अवयव को (आ, जङ्घन्ति) अच्छे प्रकार शीघ्र ताड़ना करते हैं (जघनान्) ज्वानों को (उप जिघ्नते) समीप से चलाते हैं, वैसे तू (समत्सु) संग्रामों में (प्रचेतसः) शिक्षा से विशेष कर चेतन किये (अश्वान्) घोड़ों को (चोदय) प्रेरणा कर ॥५० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे राजा और राजपुरुष विमानादि रथ और घोड़ों के चलाने तथा युद्ध के व्यवहारों को जानें, वैसे उनकी स्त्रियाँ भी जानें ॥५० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजधर्ममाह ॥

अन्वय:

(आ) समन्तात् (जङ्घन्ति) भृशं घ्नन्ति ताडयन्ति (सानु) अवयवम् (एषाम्) अश्वादीनाम् (जघनान्) यूनः (उप) (जिघ्नते) घ्नन्ति गमयन्ति (अश्वाजनि) या अश्वान् जनयति सुशिक्षितान् करोति तत्सम्बुद्धौ (प्रचेतसः) शिक्षया प्रकर्षेण विज्ञापितान् (अश्वान्) तुरङ्गान् (समत्सु) सङ्ग्रामेषु (चोदय) प्रेरय ॥५० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - अश्वाजनि विदुषि राज्ञि ! यथा वीरा एषां सानु आजङ्घन्ति जघनानुप जिघ्नते तथा त्वं समत्सु प्रचेतसोऽश्वाञ्चोदय ॥५० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा राजा राजपुरुषाश्च यानाश्वचालनयुद्धव्यवहारान् जानीयुस्तथा तत्स्त्रियोऽपि विजानन्तु ॥५० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे राजे व राजपुरुष विमान, रथ, घोडेस्वारी आणि युद्धाचे व्यवहार जाणतात, तसे त्यांच्या स्रियांनीही हे सर्व व्यवहार जाणावे.