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ब्राह्म॑णासः॒ पित॑रः॒ सोम्या॑सः शि॒वे नो॒ द्यावा॑पृथि॒वीऽअ॑ने॒हसा॑। पू॒षा नः॑ पातु दुरि॒तादृ॑तावृधो॒ रक्षा॒ माकि॑र्नोऽअ॒घश॑ꣳसऽईशत ॥४७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ब्रा॒ह्म॑णासः। पित॑रः। सोम्यासः॑। शि॒वेऽइति॑ शि॒वे। नः॒। द्यावा॑पृथि॒वीऽइति॒ द्यावा॑पृथि॒वी। अ॒ने॒हसा॑। पू॒षा। नः॒। पा॒तु॒। दु॒रि॒तादिति॑ दुःऽइ॒तात् ऋ॒ता॒वृ॒धः॒। ऋ॒त॒वृध॒ इत्यृ॑तऽवृधः। रक्ष॑। माकिः॑। न॒। अ॒घश॑ꣳस॒ इत्य॒घऽश॑ꣳसः। ई॒श॒त॒ ॥४७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:47


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

किनका सत्कार करना चाहिए, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (सोम्यासः) उत्तम आनन्दकारक गुणों के योग्य (ऋतावृधः) सत्य को बढ़ानेवाले (पितरः) रक्षक (ब्राह्मणासः) वेद और ईश्वर के जानने हारे विद्वान् जन (नः) हमारे लिए कल्याण करने हारे और (अनेहसा) कारणरूप से अविनाशी (द्यावापृथिवी) प्रकाश-पृथिवी (शिवे) कल्याणकारी हों, (पूषा) पुष्टि करने हारा परमात्मा (नः) हम को (दुरितात्) दुष्ट अन्याय के आचरण से (पातु) बचावे, जिससे (नः) हम को मारने को (अघशंसः) पाप की प्रशंसा करने हारा चोर (माकिः) न (ईशत) समर्थ हो, उन विद्वानों की तू (रक्ष) रक्षा कर और चोरों को मार ॥४७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो विद्वान् जन तुम को धर्मयुक्त कर्त्तव्य में प्रवृत्त कर, दुष्ट आचरण से पृथक् रखते, दुष्टाचारियों के बल को नष्ट और हमारी पुष्टि करते, वे सदैव सत्कार करने योग्य हैं ॥४७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

के सत्कर्त्तव्या इत्याह ॥

अन्वय:

(ब्राह्मणासः) वेदेश्वरविदः (पितरः) पालकाः (सोम्यासः) ये सोमगुणानर्हन्ति ते (शिवे) कल्याणकरे (नः) अस्मभ्यम् (द्यावापृथिवी) प्रकाशभूमी (अनेहसा) अविनाशिनौ (पूषा) पुष्टिकरः (नः) अस्मान् (पातु) (दुरितात्) दुष्टान्यायाचरणात् (ऋतावृधः) य ऋतं सत्यं वर्द्धयन्ति ते (रक्ष)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अ०६.३.१३५] इति दीर्घः। (माकिः) निषेधे (नः) अस्मान् (अघशंसः) पापप्रशंसी स्तेनः (ईशत) समर्थो भवेत् ॥४७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! ये सोम्यास ऋतावृधः पितरो ब्राह्मणासो विद्वांसो नः कल्याणकरा अनेहसा द्यावापृथिवी च शिवे भवतः। पूषा परमात्मा नो दुरितात् पातु यतो नो हिंसितुमघशंसो माकिरीशत तान् रक्ष स्तेनाञ्जहि ॥४७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! ये विद्वांसो युष्मान् धर्म्ये कृत्ये प्रवर्त्य दुष्टाचारात् पृथक् रक्षन्ति, दुष्टाचारिणां बलं निरुन्धन्त्यस्माकं पुष्टिञ्च जनयन्ति, ते सदा सत्कर्त्तव्याः ॥४७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जे विद्वान लोक तुम्हाला धर्मयुक्त कर्तव्यामध्ये प्रवृत्त करून दुष्ट वर्तनापासून दूर ठेवतात व दुष्ट माणसांचे बळ नष्टा करून सर्व माणसांना बलवान करतात त्यांचा सदैव सत्कार केला पाहिजे.