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तेऽआ॒चर॑न्ती॒ सम॑नेव॒ योषा॑ मा॒तेव॑ पु॒त्रं बि॑भृतामु॒पस्थे॑। अप॒ शत्रू॑न् विध्यता संविदा॒नेऽआर्त्नी॑ऽइ॒मे वि॑ष्फु॒रन्ती॑ऽअ॒मित्रा॑न् ॥४१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तेऽइति॒ ते। आ॒चर॑न्ती॒ इत्या॒ऽचर॑न्ती। सम॑ने॒वेति॒ सम॑नाऽइव। योषा॑। मा॒तेवेति॑ मा॒ताऽइ॑व। पु॒त्रम्। बि॒भृ॒ता॒म्। उ॒पस्थ॒ इत्यु॒पऽस्थे॑। अप॑। शत्रू॑न्। वि॒ध्य॒ता॒म्। सं॒वि॒दा॒ने इति॑ स्ऽविदा॒ने। आर्त्नी॒ऽइत्या॑र्त्नी॑। इ॒मेऽइती॒मे। वि॒ष्फु॒रन्ती॑। वि॒स्फु॒रन्ती॒ इति॑ विऽस्फु॒रन्ती॑। अ॒मित्रा॑न् ॥४१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:41


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीर पुरुषो ! दो धनुष् की प्रत्यञ्चा (योषा) विदुषी (समनेव) प्राण के समान सम्यक् पति को प्यारी स्त्री स्वपति को और (मातेव) जैसे माता (पुत्रम्) अपने सन्तान को (बिभृताम्) धारण करें, वैसे (उपस्थे) समीप में (आचरन्ती) अच्छे प्रकार प्राप्त हुई (शत्रून्) शत्रुओं को (अप) (विध्यताम्) दूर तक ताड़ना करें (इमे) ये (संविदाने) अच्छे प्रकार विज्ञान की निमित्त (आर्त्नी) प्राप्त हुर्इं (अमित्रान्) शत्रुओं को (विष्फुरन्ती) विशेष कर चलायमान करती वर्त्तमान हैं, (ते) उन दोनों का यथावत् सम्यक् प्रयोग करो अर्थात् उन को काम में लाओ ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में दो उपमालङ्कार हैं। जैसे हृदय को प्यारी स्त्री पति को और विदुषी माता अपने पुत्र को अच्छे प्रकार पुष्ट करती है, वैसे सम्यक् प्रसिद्ध काम देनेवाली धनुष् की दो प्रत्यञ्चा शत्रुओं को पराजित कर वीरों को प्रसन्न करती हैं ॥४१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ते) धनुर्ज्ये (आचरन्ती) समन्तात् प्राप्नुवत्यौ (समनेव) सम्यक् प्राण इव प्रिया (योषा) विदुषी स्त्री (मातेव) जननीव (पुत्रम्) सन्तानम् (बिभृताम्) धरेताम् (उपस्थे) समीपे (अप) दूरीकरणे (शत्रून्) अरीन् (विध्यताम्) ताडयेताम् (संविदाने) सम्यग्विज्ञाननिमित्ते (आर्त्नी) प्राप्यमाणे (इमे) (विष्फुरन्ती) विशेषेण चालयन्त्यौ (अमित्रान्) मित्रभावरहितान् ॥४१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीराः ! ये योषा समनेव पतिं मातेव पुत्रं बिभृतामुपस्थे आचरन्ती शत्रूनप विध्यतामिमे संविदाने आर्त्नी अमित्रान् विष्फुरन्ती वर्त्तेते, ते यथावत् संप्रयुङ्ग्ध्वम् ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र द्वावुपमालङ्कारौ। यथा हृद्या स्त्री पतिं विदुषी च माता पुत्रं सम्पोषयतस्तथा धनुर्ज्ये संविदितक्रिये शत्रून् पराजित्य वीरान् प्रसादयतः ॥४१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात दोन उपमालंकार आहेत. जशी अंतःकरणाला प्रिय असलेली स्री पतीला पुष्ट करते व विदुषीमाता आपल्या पुत्रांना पुष्ट करते तशा धनुष्यांच्या दोन प्रत्यंचा शत्रूंना पराजित करून वीरांना प्रसन्न करतात.