व॒क्ष्यन्ती॒वेदा ग॑नीगन्ति॒ कर्णं॑ प्रि॒यꣳ सखा॑यं परिषस्वजा॒ना। योषे॑व शिङ्क्ते॒ वित॒ताधि॒ धन्व॒ञ्ज्या इ॒यꣳ सम॑ने पा॒रय॑न्ती ॥४० ॥
व॒क्ष्यन्ती॒वेति॑ व॒क्ष्यन्ती॑ऽइव। इत्। आ॒ग॒नी॒गन्ति॒। कर्ण॑म्। प्रि॒यम्। सखा॑यम्। प॒रि॒ष॒स्व॒जा॒ना। प॒रि॒ष॒स्व॒जा॒नेति॑ परिऽसस्वजा॒ना। योषे॒वेति॒ योषा॑ऽइव। शि॒ङ्क्ते॒। वित॒तेति॒ विऽत॑ता। अधि॑। धन्व॑न्। ज्या। इ॒यम्। सम॑ने। पा॒रय॑न्ती ॥४० ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(वक्ष्यन्तीव) यथा वदिष्यन्ती विदुषी स्त्री तथा (इत्) एव (आगनीगन्ति) भृशं बोधं प्रापयन्ति (कर्णम्) श्रुतस्तुतिम् (प्रियम्) कमनीयम् (सखायम्) सुहृद्वद्वर्त्तमानम् (परिषस्वजाना) परितः सर्वतः सङ्गं कुर्वाणा (योषेव) स्त्री (शिङ्क्ते) शब्दयति (वितता) विस्तृता (अधि) उपरि (धन्वन्) धन्वनि (ज्या) प्रत्यञ्चा (इयम्) (समने) समे (पारयन्ती) विजयं प्रापयन्ती ॥४० ॥