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के॒तुं कृ॒ण्वन्न॑के॒तवे॒ पेशो॑ मर्याऽअपे॒शसे॑। समु॒षद्भि॑रजायथाः ॥३७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

के॒तुम्। कृ॒ण्वन्। अ॒के॒तवे॑। पेशः॑। म॒र्याः॒। अ॒पे॒शसे॑। सम्। उ॒षद्भि॒रित्यु॒षत्ऽभिः॑। अ॒जा॒य॒थाः॒ ॥३७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:37


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

आप्त लोग कैसे होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् पुरुष ! जैसे (मर्याः) मनुष्य (अपेशसे) जिसके सुवर्ण नहीं है, उसके लिए (पेशः) सुवर्ण को और (अकेतवे) जिस को बुद्धि नहीं है, उसके लिए (केतुम्) बुद्धि को करते हैं, उन (उषद्भिः) होम करनेवाले यजमान पुरुषों के साथ बुद्धि और धन को (कृण्वन्) करते हुए आप (सम्, अजायथाः) सम्यक् प्रसिद्ध हूजिये ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वे ही आप्तजन हैं जो अपने आत्मा के तुल्य अन्यों का भी सुख चाहते हैं, उन्हीं के सङ्ग से विद्या की प्राप्ति अविद्या की हानि, धन का लाभ और दरिद्रता का विनाश होता है ॥३७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

आप्ताः कीदृशा इत्याह ॥

अन्वय:

(केतुम्) प्रज्ञाम्। केतुरिति प्रज्ञानामसु पठितम् ॥ (निघ०३.९) (कृण्वन्) कुर्वन् (अकेतवे) अविद्यमानप्रज्ञाय जनाय (पेशः) हिरण्यम्। पेश इति हिरण्यनामसु पठितम् ॥ (निघ०१.२) (मर्याः) मनुष्याः (अपेशसे) अविद्यमानं पेशः सुवर्णं यस्य तस्मै नराय (सम्) सम्यक्। (उषद्भिः) य उषन्ति हविर्दहन्ति तैर्यजमानैः (अजायथाः) ॥३७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथा मर्या अपेशसे पेशोऽकेतवे केतुं कुर्वन्ति, तैरुषद्भिः सह प्रज्ञां श्रियं च कृण्वन् सँस्त्वं समजायथाः ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। त एव आप्ता ये स्वात्मवदन्येषामपि सुखमिच्छन्ति, तेषामेव सङ्गेन विद्याप्राप्तिरविद्याहानिः, श्रियो लाभो, दरिद्रताया विनाशश्च भवति ॥३७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे आपल्याप्रमाणे इतरांचे सुखही इच्छितात तेच आप्तजन असतात. त्यांच्यामुळे विद्येची प्राप्ती, अविद्येचा नाश व दारिद्र्य नष्ट होते.