वांछित मन्त्र चुनें

होता॑ यक्ष॒द् दैव्या॒ होता॑रा भि॒षजा॒ सखा॑या ह॒विषेन्द्रं॑ भिषज्यतः। क॒वी दे॒वौ प्रचे॑तसा॒विन्द्रा॑य धत्तऽ इन्द्रि॒यं वी॒तामाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑ ॥७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। दैव्या॑। होता॑रा। भि॒षजा॑। सखा॑या। ह॒विषा॑। इन्द्र॑म्। भि॒ष॒ज्य॒तः॒। क॒वीऽइति॑ क॒वी। दे॒वौ। प्रचे॑तसा॒विति॒ प्रऽचे॑तसौ। इन्द्रा॑य। ध॒त्तः॒। इ॒न्द्रि॒यम्। वी॒ताम्। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) युक्त आहार-विहार के करने हारे वैद्यजन ! जैसे (होता) सुख देनेहारे आप (आज्यस्य) जानने योग्य निदान आदि विषय को (यक्षत्) सङ्गत करते हैं, (दैव्या) विद्वानों में उत्तम (होतारा) रोग को निवृत्त कर सुख देनेवाले (सखाया) परस्पर मित्र (कवी) बुद्धिमान् (प्रचेतसौ) उत्तम विज्ञान से युक्त (देवौ) वैद्यक विद्या से प्रकाशमान (भिषजा) चिकित्सा करनेवाले दो वैद्य (हविषा) यथायोग्य ग्रहण करने योग्य व्यवहार से (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्य के चाहनेवाले जीव की (भिषज्यतः) चिकित्सा करते (इन्द्राय) उत्तम ऐश्वर्य के लिये (इन्द्रियम्) धन को (धत्तः) धारण करते और अवस्था को (वीताम्) प्राप्त होते हैं, वैसे (यज) प्राप्त हूजिये ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे श्रेष्ठ वैद्य रोगियों पर कृपा कर ओषधि आदि के उपाय से रोगों को निवृत्त कर ऐश्वर्य और आयुर्दा को बढ़ाते हैं, वैसे तुम लोग सब प्राणियों में मित्रता की वृत्ति कर सब के सुख और अवस्था को बढ़ाओ ॥७ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(होता) सुखप्रदाता (यक्षत्) (दैव्या) देवेषु विद्वत्सु साधू (होतारा) रोगं निवर्त्य सुखस्य प्रदातारौ (भिषजा) चिकित्सकौ (सखाया) सुहृदौ (हविषा) यथायोग्येन गृहीतव्यवहारेण (इन्द्रम्) परमैश्वर्यमिच्छुकं जीवम् (भिषज्यतः) चिकित्सां कुरुतः (कवी) प्राज्ञौ (देवौ) वैद्यकविद्यया प्रकाशमानौ (प्रचेतसौ) प्रकृष्टविज्ञानयुक्तौ (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (धत्तः) दध्याताम् (इन्द्रियम्) धनम् (वीताम्) प्राप्नुताम् (आज्यस्य) निदानादेः (होतः) युक्ताहारविहारकृत् (यज) प्राप्नुहि ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतस्त्वं यथा होताऽऽज्यस्य यक्षद्दैव्या होतारा सखाया कवी प्रचेतसौ देवौ भिषजा हविषेन्द्रं भिषज्यत इन्द्रायेन्द्रियं धत्त आयुर्वीतां तथा यज ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यथा सद्वैद्या रोगिणोऽनुकम्प्यौषधादिना रोगान् निवार्यैश्वर्यायुषी वर्द्धयन्ति, तथा यूयं सर्वेषु मैत्रीं भावयित्वा सर्वेषां सुखायुषी वर्द्धयत ॥७ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! श्रेष्ठ वैद्य जशी रोग्यांवर कृपा करून औषधांनी रोग नाहीसे करतो व आयुष्य आणि ऐश्वर्य वाढवितो तसे तुम्ही सर्व प्राण्यांबरोबर मैत्री करून सर्वांचे सुख व आयुष्य वाढवा.