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होता॑ यक्षदु॒षेऽ इन्द्र॑स्य धे॒नू सु॒दुघे॑ मा॒तरा॑ म॒ही। स॒वा॒तरौ॒ न तेज॑सा व॒त्समिन्द्र॑मवर्द्धतां वी॒तामाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑ ॥६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। उ॒षेऽइत्यु॒षे। इन्द्र॑स्य। धे॒नूऽइति॑ धे॒नू। सु॒दुघे॒ऽइति॑ सु॒ऽदुघे॑। मा॒तरा॑। म॒हीऽइति॑ म॒ही। स॒वा॒तरा॒विति॑ सऽवा॒तरौ॑। न। तेज॑सा। व॒त्सम्। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्द्ध॒ता॒म्। वी॒ताम्। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:6


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) सुखदाता जन ! आप जैसे (इन्द्रस्य) बिजुली की (सुदुघे) सुन्दर कामनाओं की पूरक (मातरा) माता के तुल्य वर्त्तमान (मही) बड़ी (धेनू, सवातरौ) वायु के साथ वर्त्तमान दुग्ध देनेवाली दो गौ के (न) समान (उषे) प्रतापयुक्त भौतिक और सूर्यरूप अग्नि के (तेजसा) तीक्ष्ण प्रताप से (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्ययुक्त (वत्सम्) बालक को (वीताम्) प्राप्त हों तथा (होता) दाता (आज्यस्य) फेंकने योग्य वस्तु का (यक्षत्) सङ्ग करे और (अवर्द्धताम्) बढ़े, वैसे (यज) यज्ञ कीजिये ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो ! तुम जैसे वायु से प्रेरणा किये भौतिक और विद्युत् अग्नि सूर्यलोक के तेज को बढ़ाते हैं और जैसे दुग्धदात्री गौ के तुल्य वर्त्तमान प्रतापयुक्त दिन-रात सब व्यवहारों के आरम्भ और निवृत्ति करानेहारे होते हैं, वैसे यत्न किया करो ॥६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(होता) (यक्षत्) (उषे) प्रतापयुक्त (इन्द्रस्य) विद्युतः (धेनू) दुग्धदात्र्यौ गावौ (सुदुघे) सुष्ठु कामप्रपूरिके (मातरा) मातृवद्वर्त्तमाने (मही) महत्यौ (सवातरौ) वायुना सह वर्त्तमानौ (न) इव (तेजसा) तीक्ष्णप्रतापेन (वत्सम्) (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (अवर्द्धताम्) वर्द्धेत (वीताम्) प्राप्नुताम् (आज्यस्य) प्रक्षेप्तुं योग्यस्य (होतः) (यज) ॥६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतस्त्वं यथेन्द्रस्य सुदुघे मातरा मही धेनू सवातरौ नोषे भौतिकसूर्य्याऽग्न्योस्तेजसेन्द्रं वत्सं वीतां होताऽऽज्यस्य यक्षदवर्द्धतां तथा यज ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्याः ! यूयं यथा वायुना प्रेरितौ भौमविद्युतावग्नी सूर्यलोकतेजो वर्द्धयतो यथा धेनुवद्वर्त्तमाने उषे सर्वेषां व्यवहाराणामारम्भनिवर्त्तिके भवतस्तथा प्रयतध्वम् ॥६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! वायूमुळे जसे भौतिक अग्नी व विद्युत सूर्याचा तेजस्वीपणा वाढवितात आणि दुभत्या गाईप्रमाणे दिवस व रात्र सर्व व्यवहाराचा आरंभ व अन्त करतात तसा तुम्ही प्रयत्न करा.