दे॒वीऽऊ॒र्जाहु॑ती॒ दुघे॑ सु॒दुघे॒ पय॒सेन्द्रं॑ वयो॒धसं॑ दे॒वी दे॒वम॑वर्धताम्। प॒ङ्क्त्या छन्द॑सेन्द्रि॒यꣳ शु॒क्रमिन्द्रे॒ वयो॒ दध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य वीतां॒ यज॑ ॥३९ ॥
दे॒वीऽइति॑ दे॒वी। ऊ॒र्जाहु॑ती॒ इत्यू॒र्जाऽआ॑हुती। दुघे॒ऽइति॒ दुघे॑। सु॒दुघे॒ इति॑ सु॒ऽदुघे॑। पय॑सा। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। दे॒वीऽइति॑ दे॒वी। दे॒वम्। अ॒व॒र्ध॒ता॒म्। प॒ङ्क्त्या। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। शु॒क्रम्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। वी॒ता॒म्। यज॑ ॥३९ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
(देवी) दात्र्यौ (ऊर्जाहुती) सुसंस्कृतान्नाहुती (दुघे) पूरिके (सुदुघे) सुष्ठुकामप्रपूरिके (पयसा) जलवर्षणेन (इन्द्रम्) जीवम् (वयोधसम्) प्राणधारिणम् (देवी) पतिव्रता विदुषी स्त्री (देवम्) स्त्रीव्रतं विद्वांसम् (अवर्धताम्) (पङ्क्त्या) (छन्दसा) (इन्द्रियम्) धनम् (शुक्रम्) वीर्यम् (इन्द्रे) जीवे (वयः) कमनीयं सुखम् (दधत्) (वसुवने) धनसेविने (वसुधेयस्य) (वीताम्) (यज) ॥३९ ॥