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दे॒वीऽउ॒षासा॒नक्ता॑ दे॒वमिन्द्रं॑ वयो॒धसं॑ दे॒वी दे॒वम॑वर्धताम्। अ॒नु॒ष्टुभा॒ छन्द॑सेन्द्रि॒यं बल॒मिन्द्रे॒ वयो॒ दध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य वीतां॒ यज॑ ॥३७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वीऽइति॑ दे॒वी। उ॒षासा॒नक्ता॑। उ॒षसा॒नक्तेत्यु॒षसा॒नक्ता॑। दे॒वम्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। दे॒वी। दे॒वम्। अ॒व॒र्ध॒ता॒म्। अ॒नु॒ष्टुभा॑। अ॒नु॒स्तुभेत्य॑नु॒ऽस्तुभा॑। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। बल॑म्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। वी॒ता॒म्। यज॑ ॥३७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:37


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य कैसे बढ़ें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् जन ! जैसे (उषासानक्ता) दिन-रात्रि के समान (देवी) सुन्दर शोभायमान पढ़ाने पढ़नेवाली दो स्त्रियाँ (वयोधसम्) जीवन को धारण करनेवाले (देवम्) उत्तम गुणयुक्त (इन्द्रम्) जीव को जैसे (देवी) उत्तम पतिव्रता स्त्री (देवम्) उत्तम स्त्रीव्रत लम्पटादि दोषरहित पति को बढ़ावे वैसे (अवर्धताम्) बढ़ावें और जैसे (वसुधेयस्य) धनाऽऽधार कोष के (वसुवने) धन को चाहनेवाले के अर्थ (वीताम्) उत्पत्ति करें, वैसे (वयः) प्राणों के धारण को (दधत्) पुष्ट करते हुए (अनुष्टुभा, छन्दसा) अनुष्टुप् छन्द से (इन्द्रे) जीवात्मा में (इन्द्रियम्) जीव से सेवन किये (बलम्) बल को (यज) सङ्गत कीजिए ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे प्रीति से स्त्री-पुरुष और व्यवस्था से दिन-रात बढ़ते हैं, वैसे प्रीति और धर्म की व्यवस्था से आप लोग बढ़ा करें ॥३७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः कथं वर्धेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

(देवी) देदीप्यमाने (उषासानक्ता) रात्रिदिने इवाध्यापिकाध्येत्र्यौ स्त्रियौ (देवम्) दिव्यगुणम् (इन्द्रम्) जीवम् (वयोधसम्) (देवी) दिव्या पतिव्रता स्त्री (देवम्) दिव्यं स्त्रीव्रतं पतिम् (अवर्धताम्) (अनुष्टुभा) (छन्दसा) (इन्द्रियम्) इन्द्रेण जीवेन सेवितम् (बलम्) (इन्द्रे) जीवे (वयः) प्राणधारणम् (दधत्) (वसुवने) (वसुधेयस्य) (वीताम्) (यज) ॥३७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथोषासानक्तेव देवी वयोधसं देवमिन्द्रं देवी देवमिवावर्धतां यथा च वसुधेयस्य वसुवने वीतां तथा वयो दधत्सन्ननुष्टुभा छन्दसेन्द्र इन्द्रियं बलं यज ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यथा प्रीत्या स्त्रीपुरुषौ व्यवस्थयाऽहोरात्रौ च वर्धेते, तथा प्रीत्या धर्मव्यवस्थया च भवन्तो वर्धन्ताम् ॥३७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे दिवस व रात्र नियमांमुळे व स्री-पुरुष प्रेमामुळे वर्धित होतात तसे प्रेम व धर्मव्यवस्था यामुळे तुम्ही लोकही विकसित व्हा.