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दे॒वं ब॒र्हिर्व॑यो॒धसं॑ दे॒वमिन्द्र॑मवर्धयत्। गा॒य॒त्र्या छन्द॑सेन्द्रि॒यं चक्षु॒रिन्द्रे वयो॒ दध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य वेतु॒ यज॑ ॥३५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वम्। ब॒र्हिः। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। दे॒वम्। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्ध॒य॒त्। गा॒य॒त्र्या। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। चक्षुः॑। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। वेतु॑। यज॑ ॥३५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:35


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे मनुष्य बढ़ते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् पुरुष ! जैसे (देवम्) उत्तम गुणोंवाला (बर्हिः) अन्तरिक्ष (वयोधसम्) अवस्थावर्धक (देवम्) उत्तम रूपवाले (इन्द्रम्) सूर्य को (अवर्धयत्) बढ़ाता है अर्थात् चलने का अवकाश देता है और जैसे (गायत्र्या, छन्दसा) गायत्री छन्द से (इन्द्रियम्) जीव के चिह्न (चक्षुः) नेत्र इन्द्रिय को और (वयः) जीवन को (इन्द्रे) जीव में (दधत्) धारण करता हुआ (वसुधेयस्य) द्रव्य के आधार संसार के (वसुवने) धन का विभाग करने हारे मनुष्य के लिए (वेतु) प्राप्त होवे, वैसे (यज) समागम कीजिए ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे आकाश में सूर्य का प्रकाश बढ़ता है, वैसे वेदों का अभ्यास करने में बुद्धि बढ़ती है। जो इस जगत् में वेद के द्वारा सब सत्य विद्याओं को जानें, वे सब ओर से बढ़ें ॥३५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशा जना वर्धन्त इत्याह ॥

अन्वय:

(देवम्) दिव्यगुणम् (बर्हिः) अन्तरिक्षम् (वयोधसम्) वयोवर्धकम् (देवम्) दिव्यस्वरूपम् (इन्द्रम्) सूर्यम् (अवर्धयत्) वर्धयति (गायत्र्या) (छन्दसा) (इन्द्रियम्) इन्द्रस्य जीवस्य लिङ्गम् (चक्षुः) नेत्रम् (इन्द्रे) जीवे (वयः) जीवनम् (दधत्) धरत् (वसुवने) धनविभाजकाय (वसुधेयस्य) द्रव्याऽऽधारस्य संसारस्य (वेतु) प्राप्नोतु (यज) सङ्गच्छस्व ॥३५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथा देवं बर्हिर्वयोधसं देवमिन्द्रमवर्धयद् यथा च गायत्र्या छन्दसा चक्षुरिन्द्रियं वयश्चेन्द्रे दधत् सद् वसुधेयस्य वसुवने वेतु तथा यज ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽऽकाशे सूर्यप्रकाशो वर्धते, तथा वेदेषु प्रज्ञा वर्धते। येऽस्मिन् संसारे वेदद्वारा सर्वाः सत्यविद्या जानीयुस्ते सर्वतो वर्धेरन् ॥३५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकर आहे. जसा आकाशात सूर्यप्रकाश वाढतो तसे वेदाचा अभ्यास करण्याने बुद्धी वाढते जे या जगात वेदाद्वारे सर्व विद्या जाणतात त्यांची सर्व तऱ्हेने वाढ होते.