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होता॑ यक्ष॒दिन्द्र॒ स्वाहाज्य॑स्य॒ स्वाहा॒ मेद॑सः॒ स्वाहा॑ स्तो॒काना॒ स्वाहा॒ स्वाहा॑कृतीना॒ स्वाहा॑ ह॒व्यसू॑क्तीनाम्। स्वाहा॑ दे॒वाऽ आ॑ज्य॒पा जु॑षा॒णाऽ इन्द्र॒ऽ आज्य॑स्य॒ व्यन्तु॒ होत॒र्यज॑ ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। इन्द्र॑म्। स्वाहा॑। आज्य॑स्य। स्वाहा॑। मेद॑सः। स्वाहा॑। स्तो॒काना॑म्। स्वाहा॑। स्वाहा॑कृतीना॒मिति॒ स्वाहा॑ऽकृतीनाम्। स्वाहा॑। ह॒व्यसू॑क्तीना॒मिति॑ ह॒व्यऽसू॑क्तीनाम्। स्वाहा॑। दे॒वाः। आ॒ज्य॒पा इत्या॑ज्य॒ऽपाः। जु॒षा॒णाः। इन्द्रः॑। आज्य॑स्य। व्यन्तु॑। होतः॑। यज॑ ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) विद्यादाता पुरुष ! जैसे (इन्द्रः) परम ऐश्वर्य का दाता (होता) विद्योन्नति को ग्रहण करने हारा जन (आज्यस्य) जानने योग्य शास्त्र की (स्वाहा) सत्य वाणी को (मेदसः) चिकने धातु की (स्वाहा) यथार्थ क्रिया को (स्तोकानाम्) छोटे बालकों की (स्वाहा) उत्तम प्रिय वाणी को (स्वाहाकृतीनाम्) सत्य वाणी तथा क्रिया के अनुष्ठानों की (स्वाहा) होमक्रिया को और (हव्यसूक्तीनाम्) बहुत ग्रहण करने योग्य शास्त्रों के सुन्दर वचनों से युक्त बुद्धियों की (स्वाहा) उत्तम क्रियायुक्त (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्य को (यक्षत्) प्राप्त होता है, जैसे (स्वाहा) सत्यवाणी करके (आज्यस्य) स्निग्ध वचन को (जुषाणाः) प्रसन्न किये हुए (आज्यपाः) घी आदि को पीने वा उससे रक्षा करनेवाले (देवाः) विद्वान् लोग ऐश्वर्य को (व्यन्तु) प्राप्त हों, वैसे (यज) यज्ञ कीजिये ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पुरुष शरीर, आत्मा, सन्तान, सत्कार और विद्या वृद्धि करना चाहते हैं, वे सब ओर से सुखयुक्त होते हैं ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(होता) (यक्षत्) (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (स्वाहा) सत्यां वाचम् (आज्यस्य) ज्ञातुमर्हस्य (स्वाहा) सत्यक्रियया (मेदसः) स्निग्धस्य (स्वाहा) (स्तोकानाम्) अपत्यानाम् (स्वाहा) (स्वाहाकृतीनाम्) सत्यवाक्क्रियाऽनुष्ठानानाम् (स्वाहा) (हव्यसूक्तीनाम्) बहूनि हव्यानां सूक्तानि यासु तासाम् (स्वाहा) (देवाः) विद्वांसः (आज्यपाः) य आज्यं पिबन्ति वाऽऽज्येन रक्षन्ति ते (जुषाणाः) प्रीताः (इन्द्रः) परमैश्वर्यप्रदः (आज्यस्य) (व्यन्तु) (होतः) (यज) ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतर्यथेन्द्रो होताऽऽज्यस्य स्वाहा मेदसः स्वाहा स्तोकानां स्वाहा स्वाहाकृतीनां स्वाहा हव्यसूक्तीनां स्वाहेन्द्रं यक्षद् यथा स्वाहाऽऽज्यस्य जुषाणा आज्यपा देवा इन्द्रं व्यन्तु तथा यज ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये पुरुषाः शरीरात्माऽपत्यसत्क्रियाविद्यानां वृद्धिं चिकीर्षन्ति ते सर्वतः सुखापन्ना भवन्ति ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे पुरुष शरीर, आत्मा, संतान यांची वाढ करून सन्मान प्राप्त करतात व विद्यावृद्धी करण्याची इच्छा बाळगतात ते सर्व तऱ्हेने सुखी होतात.