वांछित मन्त्र चुनें

अ॒मु॒त्र॒भूया॒दध॒ यद्य॒मस्य॒ बृह॑स्पतेऽ अ॒भिश॑स्ते॒रमु॑ञ्चः। प्रत्यौ॑हताम॒श्विना॑ मृ॒त्युम॑स्माद् दे॒वाना॑मग्ने भि॒षजा॒ शची॑भिः ॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒मु॒त्र॒भूया॒दित्य॑मुत्र॒ऽभूया॑त्। अध॑। यत्। य॒मस्य॑। बृह॑स्पते। अ॒भिश॑स्ते॒रित्य॒भिऽश॑स्तेः। अमु॑ञ्चः। प्रति॑। औ॒ह॒ता॒म्। अ॒श्विना॑। मृ॒त्युम्। अ॒स्मा॒त्। दे॒वाना॑म्। अ॒ग्ने॒। भि॒षजा॑। शची॑भिः ॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:9


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अध्यापक और उपदेशकों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बृहस्पते) बड़ों के रक्षक विद्वन् ! आप (अमुत्रभूयात्) परजन्म में होनेवाले (अभिशस्तेः) सब प्रकार के अपराध से (अमुञ्चः) छूटिये। (अध) इस के अनन्तर (यत्) जो (यमस्य) धर्मात्मा नियमकर्त्ता जन की शिक्षा में रहे, उस के (मृत्युम्) मृत्यु को छुड़ाइये। हे (अग्ने) उत्तम वैद्य ! आप जैसे (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक (शचीभिः) कर्म वा बुद्धियों से (भिषजा) रोगनिवारक पदार्थों को (प्रति, औहताम्) विशेष तर्क से सिद्ध करें, वैसे (अस्मात्) इससे (देवानाम्) विद्वानों के आरोग्य को सिद्ध कीजिये ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वे ही श्रेष्ठ अध्यापक और उपदेशक हैं, जो इस लोक और परलोक में सुख होने के लिये सब को अच्छी शिक्षा करें, जिससे ब्रह्मचर्यादि कर्मों का सेवन कर मनुष्य अल्पावस्था में मृत्यु और आनन्द की हानि को न प्राप्त होवें ॥९ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकोपदेशकैः किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अमुत्रभूयात्) परजन्मनि भाविनः। अत्रामुत्रोपपदाद् भूधातोः क्यप्। (अध) अथ (यत्) (यमस्य) नियन्तुः (बृहस्पते) महतां पालक (अभिशस्तेः) सर्वतोऽपराधात् (अमुञ्चः) मुच्याः (प्रति) (औहताम्) वितर्केण साध्नुताम् (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (मृत्युम्) (अस्मात्) (देवानाम्) (अग्ने) सद्वैद्य (भिषजा) औषधानि (शचीभिः) कर्मभिः प्रज्ञाभिर्वा ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे बृहस्पते ! त्वममुत्रभूयादभिशस्तेरेनममुञ्चः। अध यद्यो यमस्य शासने तिष्ठेत् तस्य मृत्युममुञ्चः। हे अग्ने ! त्वं यथाऽश्विना शचीभिर्भिषजा प्रत्यौहतां तथाऽस्माद् देवानामारोग्यं सम्पादय ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। त एव श्रेष्ठा अध्यापकोपदेशका येऽत्र परत्र च सुखाय सर्वान् सुशिक्षयेयुः, येन ब्रह्मचर्यादीनि कर्माणि सेवयित्वा मनुष्या अल्पमृत्युमानन्दहानिं च नाप्नुयुः ॥९ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. श्रेष्ठ अध्यापक व उपदेशक यांनी इहलोक व परलोक यांचे सुख प्राप्त व्हावे यासाठी सर्वांना चांगले शिक्षण द्यावे. ज्यामुळे ब्रह्मचर्याचे पालन होऊन अल्पावस्थेत मृत्यू येणार नाही व आनंदाचा नाश होणार नाही.