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बृह॑स्पते सवितर्बो॒धयै॑न॒ꣳसꣳशि॑तं चित्सन्त॒रा सꣳशि॑शाधि। व॒र्धयै॑नं मह॒ते सौभ॑गाय॒ विश्व॑ऽएन॒मनु॑ मदन्तु दे॒वाः ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

बृह॑स्पते। स॒वि॒तः॒। बो॒धय॑। ए॒न॒म्। सꣳशि॑त॒मिति॒ सम्ऽशि॑तम्। चि॒त्। स॒न्त॒रामिति॑ समऽत॒राम्। सम्। शि॒शा॒धि॒। व॒र्धय॑। ए॒न॒म्। म॒ह॒ते। सौभ॑गाय। विश्वे॑। ए॒न॒म्। अनु॑। म॒द॒न्तु॒। दे॒वाः ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:8


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बृहस्पते) बड़े सज्जनों के रक्षक (सवितः) विद्या और ऐश्वर्य से युक्त संपूर्ण विद्या के उपदेशक आप (एनम्) इस राजा को (संशितम्) तीक्ष्ण बुद्धि के स्वभाववाला करते हुए (बोधय) चेतनतायुक्त कीजिये और (सम्, शिशाधि) सम्यक् शिक्षा कीजिये (चित्) और (सन्तराम्) अतिशय करके प्रजा को शिक्षा कीजिये (एनम्) इस राजा को (महते) बड़े (सौभगाय) उत्तम ऐश्वर्य होने के लिए (वर्धय) बढ़ाइये और (विश्वे) सब (देवाः) सुन्दर सभ्य विद्वान् (एनम्) इस राजा के (अनु, मदन्तु) अनुकूल प्रसन्न हों ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - जो राजसभा का उपदेशक है, वह इन राजादि को दुर्व्यसनों से पृथक् कर और सुशीलता को प्राप्त कराके बड़े ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए प्रवृत्त करे ॥८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(बृहस्पते) बृहतां पालक (सवितः) विद्यैश्वर्ययुक्त (बोधय) सचेतनं कुरु (एनम्) राजानम् (संशितम्) तीक्ष्णबुद्धिस्वभावम् (चित्) (सन्तराम्) अतितराम् (सं, शिशाधि) सम्यक् शिक्षस्व (वर्धय) (एनम्) (महते) (सौभगाय) उत्तमैश्वर्यभावाय (विश्वे) सर्वे (एनम्) (अनु) पश्चात् (मदन्तु) आनन्दन्तु (देवाः) सुसभ्या विद्वांसः ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे बृहस्पते ! सवितः पूर्णविद्योपदेशक त्वमेनं संशितं कुर्वन् बोधय संशिशाधि चिदपि प्रजाः सन्तरां शिशाध्येनं महते सौभगाय वर्धय विश्वे देवा एनमनु मदन्तु ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - यो राजसभोपदेशकः स एतान् दुर्व्यसनेभ्यो निवर्त्य सुशीलान् संपाद्य महैश्वर्यवृद्धये प्रवर्त्तयेत् ॥८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजसभेचा उपदेशक असतो त्याने राजाला दुर्व्यसनांपासून दूर करून सुशील बनवावे व ऐश्वर्याची वाढ करण्यासाठी त्याला प्रवृत्त करावे.