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अति॒ निहो॒ऽ अति॒ स्रिधोऽत्यचि॑त्ति॒मत्यरा॑तिमग्ने। विश्वा॒ ह्य᳖ग्ने दुरि॒ता सह॒स्वाथा॒ऽस्मभ्य॑ꣳ स॒हवीरा र॒यिं दाः॑ ॥६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अति॑। निहः॑। अति॑। स्रिधः॑। अति॑। अचि॑त्तिम्। अति॑। अरा॑तिम्। अ॒ग्ने॒ ॥ विश्वा॑। हि। अ॒ग्ने॒। दु॒रि॒तेति॑ दुःऽइ॒ता। सह॑स्व। अथ॑। अ॒स्मभ्य॑म्। स॒हवी॑रा॒मिति॑ स॒हऽवी॑राम्। र॒यिम्। दाः॒ ॥६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:6


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) तेजस्वि सभापते ! आप (अति, निहः) निश्चय करके असत्य को छोड़नेवाले होते हुए (स्रिधः) दुष्टाचारियों को (अति, सहस्व) अधिक सहन कीजिये (अचित्तिम्) अज्ञान का (अति) अतिक्रमण कर (अरातिम्) दान के निषेध को सहन कीजिये। हे (अग्ने) दृढ़ विद्यावाले तेजस्वि विद्वन् ! आप (हि) ही (विश्वा) सब (दुरिता) दुष्ट आचरणों को (अति) अधिक सहन कीजिये (अथ) इस के पश्चात् (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (सहवीराम्) वीरपुरुषों से युक्त सेना और (रयिम्) धन को (दाः) दीजिये ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - जो दुष्ट आचारों के त्यागी कुत्सित जनों के रोकनेवाले अज्ञान तथा अदान को पृथक् करते और दुर्व्यसनों से पृथक् हुए, सुख-दुःख के सहने और वीरपुरुषों की सेना से प्रीति करनेवाले गुणों के अनुकूल जनों का ठीक सत्कार करते हुए न्याय से राज्य पालें, वे सदा सुखी होवें ॥६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अति) अतिशयेन (निहः) योऽसत्यं नितरां जहाति सः (अति) (स्रिधः) दुष्टाचारान् (अति) अतिक्रम्य (अचित्तिम्) अज्ञानम् (अति) (अरातिम्) अदानम् (अग्ने) तेजस्विन् सभापते ! (विश्वा) सर्वाणि (हि) खलु (अग्ने) दृढविद्य (दुरिता) दुष्टाचरणानि (सहस्व) (अथ) (अस्मभ्यम्) (सहवीराम्) वीरैः सह वर्त्तमानां सेनाम् (रयिम्) धनम् (दाः) दद्याः ॥६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वमति निहः सन् स्रिधोऽति सहस्व, अचित्तिमत्यरातिं सहस्व। हे अग्ने ! त्वं हि विश्वा दुरिताऽतिसहस्व, अथाऽस्मभ्यं सहवीरां रयिं च दाः ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - ये दुष्टाचारत्यागिनः कुत्सितानां निरोधका अज्ञानमदानं च पृथक् कुर्वाणा दुर्व्यसनेभ्यः पृथग्भूताः सुखदुःखयोः सोढारो वीरसेनाप्रिया यथागुणानां जनानां योग्यं सत्कारं कुर्वन्तः सन्तो न्यायेन राज्यं पालयेयुस्ते सदा सुखिनो भवेयुरिति ॥६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे (राजे) दुष्ट आचरणाचा त्याग करतात, नीच लोकांना रोखतात, अज्ञान व कृपणता दूर करतात, दुर्व्यसनांना तिलांजली देतात, सुख-दुःख सहन करतात, वीर पुरुषांच्या सेनेबाबत प्रेम बाळगणाऱ्या लोकांचा सत्कार करतात व न्यायाने राज्यपालन करतात, ते नेहमी सुखी राहतात.