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स त्वं न॑श्चित्र वज्रहस्त धृष्णु॒या म॒ह स्त॑वा॒नोऽअ॑द्रिवः। गामश्व॑ꣳ र॒थ्य᳖मिन्द्र॒ संकि॑र स॒त्रा वाजं॒ न जि॒ग्युषे॑ ॥३८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। त्वम्। नः॒। चि॒त्र॒। व॒ज्र॒ह॒स्तेति॑ वज्रऽहस्त। धृ॒ष्णु॒येति॑ धृष्णु॒ऽया। म॒हः। स्त॒वा॒नः। अ॒द्रि॒व॒ इत्य॑द्रिऽवः। गाम्। अश्व॑म्। र॒थ्य᳖म्। इ॒न्द्र॒। सम्। कि॒र॒। स॒त्रा। वाज॑म्। न। जि॒ग्युषे॑ ॥३८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:38


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वान् क्या करता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (चित्र) आश्चर्यस्वरूप (वज्रहस्त) वज्र हाथ में लिये (अद्रिवः) प्रशस्त पत्थर के बने हुए वस्तुओंवाले (इन्द्र) शत्रुनाशक विद्वन् ! (धृष्णुया) ढीठता से (महः) बहुत (स्तवानः) स्तुति करते हुए (सः) सो पूर्वोक्त (त्वम्) आप (जिग्युषे) जय करनेवाले पुरुष के लिए तथा (नः) हमारे लिये (सत्रा) सत्य (वाजम्) विज्ञान के (न) तुल्य (गाम्) बैल तथा (रथ्यम्) रथ के योग्य (अश्वम्) घोड़े को (सं किर) सम्यक् प्राप्त कीजिये ॥३८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे मेघसम्बन्धी सूर्य वर्षा से सब को सम्बद्ध करता है, वैसे विद्वान् सत्य के विज्ञान से सब के ऐश्वर्य को प्रकाशित करता है ॥३८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वान् किं करोतीत्याह ॥

अन्वय:

(सः) पूर्वोक्तः (त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् (चित्र) आश्चर्यस्वरूप (वज्रहस्त) (धृष्णुया) प्रगल्भतया (महः) महत् (स्तवानः) स्तुवन् (अद्रिवः) प्रशस्ताश्ममयवस्तुयुक्त (गाम्) वृषभम् (अश्वम्) (रथ्यम्) रथस्य वोढारम् (इन्द्र) (सम्) (किर) प्रापय (सत्रा) सत्यम् (वाजम्) विज्ञानम् (न) इव (जिग्युषे) जयशीलाय ॥३८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे चित्र वज्रहस्ताद्रिव इन्द्र ! धृष्णुया महः स्तवानः स त्वं जिग्युषे नः सत्रा वाजं न गां रथ्यमश्वं संकिर ॥३८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा मेघसम्बन्धी सूर्यो वृष्ट्या सर्वान् सम्बध्नाति तथा विद्वान् सत्यविज्ञानेन सर्वैश्वर्यं प्रकाशयति ॥३८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. सूर्य जसा मेघांद्वारे वृष्टी करून सर्वांना जोडतो तसे विद्वान सत्यज्ञानाने सर्वांचे ऐश्वर्य प्रकट करतात.