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त्वामिद्धि हवा॑महे सा॒तौ वाज॑स्य का॒रवः॑। त्वां वृ॒त्रेष्वि॑न्द्र॒ सत्प॑तिं॒ नर॒स्त्वां काष्ठा॒स्वर्व॑तः ॥३७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम्। इत्। हि। हवा॑महे। सा॒तौ। वाज॑स्य। का॒रवः॑। त्वाम्। वृ॒त्रेषु॑। इ॒न्द्र॒। सत्प॑ति॒मिति॒ सत्ऽप॑तिम्। नरः॑। त्वाम्। काष्ठा॑सु। अर्व॑तः ॥३७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:37


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजधर्म विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) सूर्य के तुल्य जगत् के रक्षक राजन् ! (वाजस्य) विद्या वा विज्ञान से हुए कार्य के (हि) ही (कारवः) करनेवाले (नरः) नायक हम लोग (सातौ) रण में (त्वाम्) आप को, जैसे (वृत्रेषु) मेघों में सूर्य को, वैसे (सत्पतिम्) सत्य के प्रचार से रक्षक (त्वाम्) आप को (अर्वतः) शीघ्रगामी घोड़े के तुल्य सेना में देखें, (काष्ठासु) दिशाओं में (त्वाम्) आप को (इत्) ही (हवामहे) ग्रहण करें ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे सेना और सभा के पति ! तुम दोनों सूर्य के तुल्य न्याय और अभय के प्रकाशक, शिल्पियों का संग्रह करने और सत्य के प्रचार करनेवाले होओ ॥३७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजधर्मविषयमाह ॥

अन्वय:

(त्वाम्) (इत्) एव (हि) (हवामहे) गृह्णीमः (सातौ) सामे (वाजस्य) विद्याविज्ञानजन्यस्य कार्यस्य (कारवः) कर्त्तारः (त्वाम्) (वृत्रेषु) घनेषु (इन्द्र) सूर्य इव जगत्पालक (सत्पतिम्) सत्यस्य प्रचारेण पालकम् (नरः) नेतारः (त्वाम्) (काष्ठासु) दिक्षु (अर्वतः) आशुगामिनोऽश्वस्येव ॥३७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! वाजस्य हि कारवो नरो वयं सातौ त्वां वृत्रेषु सूर्यमिव सत्पतिं त्वामर्वत इव सेनायां पश्येम काष्ठासु त्वामिद्धवामहे ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे सेनासभेशौ ! युवां सूर्यवन्न्यायाभयप्रकाशकौ शिल्पिनां सङ्ग्रहीतारौ सत्यस्य प्रचारकौ भवेतम् ॥३७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे सेनापती व राजा ! तुम्ही दोघे सूर्याप्रमाणे न्याय व निर्भयता ठेवा. कारागिरांना एकत्र करा व सत्याचा प्रसार करा.