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न त्वावाँ॑ २ ॥ऽ अ॒न्यो दि॒व्यो न पार्थि॑वो॒ न जा॒तो न ज॑निष्यते। अ॒श्वा॒यन्तो॑ मघवन्निन्द्र वा॒जिनो॑ ग॒व्यन्त॑स्त्वा हवामहे ॥३६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न। त्वावा॒निति॒ त्वाऽवा॑न्। अ॒न्यः। दि॒व्यः। न। पार्थि॑वः। न। जा॒तः। न। ज॒नि॒ष्य॒ते॒। अ॒श्वा॒यन्तः॑। अ॒श्व॒यन्त॒ इत्य॑श्व॒ऽयन्तः॑। म॒घ॒व॒न्निति॑ मघऽवन्। इ॒न्द्र॒। वा॒जिनः॑। ग॒व्यन्तः॑। त्वा॒। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥३६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:36


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वर ही उपासना करने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) पूजित उत्तम ऐश्वर्य से युक्त (इन्द्र) सब दुःखों के विनाशक परमेश्वर ! (वाजिनः) वेगवाले (गव्यन्तः) उत्तम वाणी बोलते हुए (अश्वायन्तः) अपने को शीघ्रता चाहते हुए हम लोग (त्वा) आप की (हवामहे) स्तुति करते हैं, क्योंकि जिस कारण कोई (अन्यः) अन्य पदार्थ (न) न कोई (त्वावान्) आप के (दिव्यः) शुद्ध (न) न कोई (पार्थिवः) पृथिवी पर प्रसिद्ध (न) न कोई (जातः) उत्पन्न हुआ और (न) न (जनिष्यते) होगा, इससे आप ही हमारे उपास्यदेव हैं ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - न कोई परमेश्वर के तुल्य शुद्ध हुआ, न होगा और न है। इसी से सब मनुष्यों को चाहिये कि इस को छोड़ अन्य किसी की उपासना इस के स्थान में कदापि न करें, यही कर्म इस लोक, परलोक में आनन्ददायक जानें ॥३६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वर एवोपासनीय इत्याह ॥

अन्वय:

(न) (त्वावान्) त्वत्सदृशः (अन्यः) भिन्नः (दिव्यः) शुद्धः (न) (पार्थिवः) पृथिव्यां विदितः (न) (जातः) उत्पन्नः (न) (जनिष्यते) उत्पत्स्यते (अश्वायन्तः) आत्मनोऽश्वमिच्छन्तः (मघवन्) परमपूजितैश्वर्य (इन्द्र) सर्वदुःखविदारक (वाजिनः) वेगवन्तः (गव्यन्तः) गां वाणीं चक्षाणाः (त्वा) (हवामहे) स्तुवीमः ॥३६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मघवन्निन्द्रेश्वर ! वाजिनो गव्यन्तोऽश्वायन्तो वयं त्वा हवामहे, यतः कश्चिदन्यः पदार्थो न त्वावान् दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते तस्माद् भवानेवाऽस्माकमुपास्यो देवोऽस्ति ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - न कोऽपि परमेश्वरेण सदृशः शुद्धो जातो वा जनिष्यमाणो वर्त्तमानो वाऽस्ति। अत एव सर्वैर्मनुष्यैरेतं विहायान्यस्य कस्याप्युपासनाऽस्य स्थाने नैव कार्या। इदमेव कर्मेहामुत्र चानन्दप्रदं विज्ञेयम् ॥३६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - परमेश्वराप्रमाणे कोणी पवित्र नाही व नसणार आणि नव्हते त्यामुळे सर्व माणसांनी त्याला सोडून इतर कुणाची उपासना कधीही करू नये. हेच कर्म इहलोक व परलोकात आनंददायक आहे हे जाणावे.