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अ॒भि त्वा॑ शूर नोनु॒मोऽदु॑ग्धाऽ इव धेनवः॑। ईशा॑नम॒स्य जग॑तः स्व॒र्दृश॒मीशा॑नमिन्द्र त॒स्थुषः॑ ॥३५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि। त्वा॒। शू॒र॒। नो॒नु॒मः॒। अदु॑ग्धा इ॒वेत्यदु॑ग्धाःऽइव। धे॒नवः॑। ईशा॑नम्। अ॒स्य। जग॑तः। स्व॒र्दृश॒मिति॑ स्वः॒दृऽश॑म्। ईशा॑नम्। इ॒न्द्र॒। त॒स्थुषः॑ ॥३५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:35


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजधर्म विषय अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शूर) निर्भय (इन्द्र) सभापते (अदुग्धा इव) बिना दूध की (धेनवः) गौओं के समान हम लोग (अस्य) इस (जगतः) चर तथा (तस्थुषः) अचर संसार के (ईशानम्) नियन्ता (स्वर्दृशम्) सुखपूर्वक देखने योग्य ईश्वर के तुल्य (ईशानम्) समर्थ (त्वा) आप को (अभि, नोनुमः) सन्मुख से सत्कार वा प्रशंसा करें ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे राजन् ! जो आप पक्षपात छोड़ के ईश्वर के तुल्य न्यायाधीश होवें, जो कदाचित् हम लोग कर भी न देवें तो भी हमारी रक्षा करें तो आप के अनुकूल हम सदा रहें ॥३५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजधर्ममाह ॥

अन्वय:

(अभि) (त्वा) त्वाम् (शूर) निर्भय (नोनुमः) भृशं सत्कुर्य्याम प्रशंसेम (अदुग्धा इव) अविद्यमानपयस इव (धेनवः) गावः (ईशानम्) ईशनशीलम् (अस्य) (जगतः) जङ्गमस्य (स्वर्दृशम्) सुखेन द्रष्टुं योग्यम् (ईशानम्) (इन्द्र) सभेश (तस्थुषः) स्थावरस्य ॥३५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे शूरेन्द्र ! धेनवोऽदुग्धा इव वयमस्य जगतस्तस्थुष ईशानं स्वर्दृशमिवेशानं त्वाऽभिनोनुमः ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे राजन् ! यदि भवान् पक्षपातं विहायेश्वरवन्न्यायाधीशो भवेद् यदि कदाचिद्वयं करमपि न दद्याम तथाऽप्यस्मान् रक्षेत् तर्हि त्वदनुकूला वयं सदा भवेम ॥५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजा जर भेदभाव न करता तू ईश्वराप्रमाणे न्यायाधीश होशील व एखाद्यावेही आम्ही प्रजेने कर न दिला तरीही आमचे रक्षण करशील तर आम्ही सदैव तुझ्या अनुकूल वर्तन करू.