बार पढ़ा गया
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब ईश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (वायो) वायु के तुल्य शीघ्रगन्ता (नियुत्वान्) नियमकर्त्ता ईश्वर आप, जैसे (अयम्) यह (शुक्रः) पवित्रकर्ता (गन्ता) गमनशील वायु (सुन्वतः) रस खींचनेवाले के (गृहम्) घर को प्राप्त होता है, वैसे मुझ को (आ, गहि) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये, जिससे आप ईश्वर (असि) हैं, इससे (ते) आप के स्वरूप को मैं (अयामि) प्राप्त होता हूँ ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे वायु सब को शोधने और सर्वत्र पहुँचनेवाला तथा सब को प्राण से भी प्यारा है, वैसे ईश्वर भी है ॥२९ ॥
बार पढ़ा गया
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथेश्वरः कीदृश इत्याह ॥
अन्वय:
(नियुत्वान्) नियन्ता (वायो) पवन इव (आ) (गहि) समन्तात् प्राप्नुहि (अयम्) (शुक्रः) पवित्रकर्त्ता (अयामि) प्राप्नोमि (ते) तव (गन्ता) (असि) (सुन्वतः) अभिषवं कुर्वतः (गृहम्) ॥२९ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे वायो ! नियुत्वानीश्वरस्त्वं यथाऽयं शुक्रो गन्ता वायुः सुन्वतो गृहं गच्छति, तथा मामागहि। यतस्त्वमीश्वरोऽसि तस्मात् ते स्वरूपमहमयामि ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वायुः सर्वशोधकः सर्वत्र गन्ता सर्वप्रियोऽस्ति, तथेश्वरोऽपि वर्त्तते ॥२९ ॥
बार पढ़ा गया
मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा वायू सर्वांची शुद्धी करणारा, सर्वत्र पसरणारा, सर्वांना प्राणापेक्षा प्रिय असतो तसाच ईश्वरही असतो.