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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - जो (विश्वे) सब (पत्यमानाः) मालिकपन करते हुए विद्वान् (उरुव्यचसः) बहुतों में व्यापक (अस्य) इस (अग्नेः) अग्नि के (धाम्ना) स्थान से (देवी) प्रकाशित (द्वारः) द्वारों तथा (व्रता) सत्यभाषणादि व्रतों का (अनु, ददन्ते) अनुकूल उपदेश देते हैं, वे सुन्दर ऐश्वर्यवाले होते हैं ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग अग्नि की विद्या के द्वारों को जानते हैं, वे सत्य आचरण करते हुए अति आनन्दित होते हैं ॥१६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(द्वारः) द्वाराणि (देवीः) देदीप्यमानानि (अनु) (अस्य) (विश्वे) सर्वे (व्रता) सत्यभाषणादीनि (ददन्ते) (अग्नेः) पावकस्य (उरुव्यचसः) बहुव्यापकस्य (धाम्ना) स्थानेन (पत्यमानाः) स्वामित्वं कुर्वाणाः ॥१६ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - ये विश्वे पत्यमाना उरुव्यचसोऽस्याग्नेर्धाम्ना देवीर्द्वारो व्रताऽनु ददन्ते, ते स्वैश्वर्या जायन्ते ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - येऽग्निविद्याया द्वाराणि जानन्ति ते सत्याचाराः सन्तोऽनुमोदन्ते ॥१६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक अग्निविद्येचे प्रवेशद्वार जाणतात ते सत्याचरण करून आनंदात राहतात.