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स य॑क्षदस्य महि॒मान॑म॒ग्नेः सऽर्इं॑ म॒न्द्रा सु॑प्र॒यसः॑। वसु॒श्चेति॑ष्ठो वसु॒धात॑मश्च ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। य॒क्ष॒त्। अ॒स्य॒। म॒हि॒मान॑म्। अ॒ग्नेः। सः। ई॒म्। म॒न्द्रा। सु॒प्र॒यस॒ इति॑ सुऽप्र॒यसः॑। वसुः॑। चेति॑ष्ठः। व॒सु॒धात॑म॒ इति॑ वसु॒ऽधात॑मः। च॒ ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह पूर्वोक्त विद्वान् मनुष्य (सुप्रयसः) प्रीतिकारक सुन्दर अन्नादि के हेतु (अस्य) इस (अग्नेः) अग्नि के (महिमानम्) बड़प्पन को (यक्षत्) सम्यक् प्राप्त हो तथा (सः) वह (वसुः) निवास का हेतु (चेतिष्ठः) अतिशय कर जाननेवाला (च) और (वसुधातमः) अत्यन्त धनों को धारण करनेवाला हुआ (ईम्) जल तथा (मन्द्रा) आनन्ददायक होमने योग्य पदार्थों को प्राप्त होवे ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष इस प्रकार अग्नि के बड़प्पन को जाने, सो अतिधनी होवे ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(सः) (यक्षत्) यजेत् सङ्गच्छेत (अस्य) (महिमानम्) महत्त्वम् (अग्नेः) पावकस्य (सः) (ईम्) जलम् (मन्द्रा) आनन्दप्रदानि हवींषि (सुप्रयसः) शोभनानि प्रयांसि प्रीतान्यन्नादीनि यस्मात् तस्य (वसुः) वासयिता (चेतिष्ठः) अतिशयेन चेता संज्ञाता (वसुधातमः) योऽतिशयेन वसूनि दधाति सः (च) समुच्चये ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - स मनुष्यः सुप्रयसोऽस्याग्नेर्महिमानं यक्षत्, स वसुश्चेतिष्ठो वसुधातमश्च सन्नीं मन्द्रा यक्षत् ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - य इत्थमग्नेर्महत्त्वं विजानीयात्, सोऽतिधनी स्यात् ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे पुरुष अग्नीचे महत्त्व जाणतात ते धनवान होतात.