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अच्छा॒यमे॑ति॒ शव॑सा घृ॒तेने॑डा॒नो वह्नि॒र्नम॑सा। अ॒ग्नि स्रुचो॑ऽ अध्व॒रेषु॑ प्र॒यत्सु॑ ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अच्छ॑। अ॒यम्। ए॒ति॒। शव॑सा। घृ॒तेन॑। ई॒डा॒नः। वह्निः। नम॑सा। अ॒ग्निम्। स्रुचः॑। अ॒ध्व॒रेषु॑। प्र॒यत्स्विति॑ प्र॒यत्ऽसु॑ ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अग्नि से उपकार लेना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अयम्) यह (ईडानः) स्तुति करता हुआ वह्निः) विद्या का पहुँचानेवाला विद्वान् जन (प्रयत्सु) प्रयत्न से सिद्ध करने योग्य (अध्वरेषु) विघ्नों से पृथक् वर्तमान यज्ञों में (शवसा) बल (घृतेन) जल और (नमसा) पृथिवी आदि अन्न के साथ वर्तमान (अग्निम्) अग्नि तथा (स्रुचः) होम के साधन स्रुवा आदि को (अच्छ, एति) अच्छे प्रकार प्राप्त होता है, उस का तुम लोग सत्कार करो ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो अग्नि इन्धनों और जल से युक्त यानों में प्रयुक्त किया हुआ बल से शीघ्र चलता है, उस को जानके उपकार में लाओ ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाऽग्निनोपकारो ग्राह्य इत्याह ॥

अन्वय:

(अच्छ) (अयम्) (एति) गच्छति (शवसा) बलेन (घृतेन) जलेन सह (ईडानः) स्तुवन् (वह्निः) विद्याया वोढा (नमसा) पृथिव्याद्यन्नेन (अग्निम्) पावकम् (स्रुचः) होमसाधनानि (अध्वरेषु) अहिंसनीयेषु (प्रयत्सु) प्रयत्नसाध्येषु वर्त्तमानेषु ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! योऽयमीडानो वह्निः प्रयत्स्वध्वरेषु शवसा घृतेन नमसा सह वर्त्तमानमग्निं स्रुचश्चाच्छैति तं यूयं सत्कुरुत ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! योऽग्निरिन्धनैर्जलेन युक्तो यानेषु प्रयुक्तः सन् बलेन सद्यो गमयति तं विज्ञायोपकुरुत ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! इंधन व जल यांनी युक्त केलेला अग्नी यांनामध्ये वापरला जातो व त्या शक्तीने ती याने ताबडतोब चालू शकतात अशा अग्नीला जाणून घेऊन त्याचा उपयोग करा.