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मध्वा॑ य॒ज्ञं न॑क्षसे प्रीणा॒नो नरा॒शꣳसो॑ऽ अग्ने। सु॒कृद्दे॒वः स॑वि॒ता वि॒श्ववा॑रः ॥१३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मध्वा॑। य॒ज्ञम्। न॒क्ष॒से॒। प्री॒णा॒नः। नरा॒शꣳसः॑। अ॒ग्ने॒। सु॒कृदिति॑ सु॒ऽकृत्। दे॒वः। स॒वि॒ता। वि॒श्ववा॑र॒ इति॑ वि॒श्वऽवा॑रः ॥१३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कैसे मनुष्य सुखी होवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! जो (नराशंसः) मनुष्यों की प्रशंसा करने (सुकृत्) उत्तम काम करने और (विश्ववारः) प्रशंसा को स्वीकार करनेवाले (प्रीणानः) चाहना करते हुए (सविता) ऐश्वर्य को चाहनेवाले (देवः) व्यवहार में चतुर आप (मध्वा) मधुर वचन से (यज्ञम्) सङ्गत व्यवहार को (नक्षसे) प्राप्त होते हो, उन आप को हम लोग प्रसन्न करें ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य यज्ञ में सुगन्धादि पदार्थों के होम से वायु जल को शुद्ध कर सब को सुखी करते हैं, वे सब सुखों को प्राप्त होते हैं ॥१३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कीदृशा जनाः सुखिनः स्युरित्याह ॥

अन्वय:

(मध्वा) मधुरेण वचनेन (यज्ञम्) सङ्गतं व्यवहारम् (नक्षसे) प्राप्नोषि (प्रीणानः) कामयमानः (नराशंसः) यो नरान् शंसति सः (अग्ने) विद्वन् (सुकृत्) यः सुष्ठु करोति सः (देवः) व्यवहर्ता (सविता) ऐश्वर्यमिच्छुकः (विश्ववारः) यो विश्वं वृणोति सः ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! यो नराशंसः सुकृद्विश्ववारः प्रीणानः सविता देवस्त्वं मध्वा यज्ञं नक्षसे, तं वयं प्रसादयेम ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या यज्ञे सुगन्धादिहोमेन वायुजले शोधयित्वा सर्वान् सुखयन्ति, ते सर्वाणि सुखानि प्राप्नुवन्ति ॥१३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे यज्ञात सुगंधी पदार्थांचा होम करून जल शुद्ध करतात व सर्वांना सुखी करतात. त्यांना सर्व सुख प्राप्त होते.