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तनू॒नपा॒दसु॑रो वि॒श्ववे॑दा दे॒वो दे॒वेषु॑ दे॒वः। प॒थो अ॑नक्तु॒ मध्वा॑ घृ॒तेन॑ ॥१२ ॥

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पद पाठ

तनू॒नपा॒दिति॒ तनू॒ऽनपा॑त्। असु॑रः। वि॒श्ववे॑दा॒ इति॑ वि॒श्वऽवे॑दाः। दे॒वः। दे॒वेषु॑। दे॒वः। प॒थः। अ॒न॒क्तु॒। मध्वा॑। घृ॒तेन॑ ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब वायु किस के समान कार्यसाधक है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (देवेषु) उत्तम गुणवाले पदार्थों में (देवः) उत्तम गुणवाला (असुरः) प्रकाशरहित वायु (विश्ववेदाः) सब को प्राप्त होनेवाला (तनूनपात्) जो शरीर में नहीं गिरता (देवः) कामना करने योग्य (मध्वा) मधुर (घृतेन) जल के साथ (पथः) श्रोत्रादि के मार्गों को (अनक्तु) प्रकट करे, उस को तुम जानो ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे परमेश्वर बड़ा देव सब में व्यापक और सब को सुख करने हारा है, वैसा वायु भी है, क्योंकि इस वायु के बिना कोई कहीं भी नहीं जा सकता ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ वायुः किंवत् कार्यसाधकोऽस्तीत्याह ॥

अन्वय:

(तनूनपात्) यस्तनूषु शरीरेषु न पतति सः (असुरः) प्रकाशरहितो वायुः (विश्ववेदाः) यो विश्वं विन्दति सः (देवः) दिव्यगुणः (देवेषु) दिव्यगुणेषु वस्तुषु (देवः) कमनीयः (पथः) मार्गान् (अनक्तु) (मध्वा) मधुरेण (घृतेन) उदकेन सह ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यो देवेषु देवोऽसुरो विश्ववेदास्तनूनपाद्देवो मध्वा घृतेन सह पथोऽनक्तु, तं यूयं विजानीत ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - यथा परमेश्वरो महादेवो विश्वव्यापी सर्वेषां सुखकरोऽस्ति तथा वायुरप्यस्ति, नह्यनेन विना कश्चिदपि कुत्रचिद् गन्तुं शक्नोति ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - परमेश्वर जसा मोठा देव आहे व सर्वत्र व्यापक आहे आणि सर्वांना सुख देणारा आहे तसा वायूही असून त्याच्याखेरीज कोणी कुठेही जाऊ शकत नाही.