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ऊ॒र्ध्वाऽ अ॑स्य स॒मिधो॑ भवन्त्यू॒र्ध्वा शु॒क्रा शो॒चीष्य॒ग्नेः। द्यु॒मत्त॑मा सु॒प्रती॑कस्य सू॒नोः ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऊ॒र्ध्वाः। अ॒स्य॒। स॒मिध॒ इति॑ स॒म्ऽइधः॑। भ॒व॒न्ति॒। ऊ॒र्ध्वा। शु॒क्रा। शो॒चीषि॑। अ॒ग्नेः। द्यु॒मत्त॒मेति॑ द्यु॒मत्ऽत॑मा। सु॒प्रती॑क॒स्येति॑ सु॒ऽप्रती॑कस्य। सू॒नोः ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अग्नि कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस (अस्य) इस (सुप्रतीकस्य) सुन्दर प्रतीतिकारक कर्मों से युक्त (सूनोः) प्राणियों के गर्भों को छुड़ाने हारे (अग्नेः) अग्नि की (ऊर्ध्वा) उत्तम (समिधः) सम्यक् प्रकाश करनेवाली समिधा तथा (ऊर्ध्वा) ऊपर को जानेवाले (द्युमत्तमा) अति उत्तम प्रकाशयुक्त (शुक्रा) शुद्ध (शोचींषि) तेज (भवन्ति) होते हैं, उस को तुम जानो ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो यह ऊपर को उठनेवाला, सब के देखने का हेतु, सब की रक्षा का निमित्त अग्नि है, उस को जान के कार्यों को निरन्तर सिद्ध किया करो ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाऽग्निः कीदृश इत्याह ॥

अन्वय:

(ऊर्ध्वाः) उत्तमाः (अस्य) (समिधः) सम्यक् प्रदीपिकाः (भवन्ति) (ऊर्ध्वाः) ऊर्ध्वानि (शुक्रा) शुद्धानि (शोचींषि) तेजांसि (अग्नेः) पावकस्य (द्युमत्तमा) अतिशयेन प्रशस्तप्रकाशयुक्तानि (सुप्रतीकस्य) शोभनानि प्रतीकानि प्रतीतिकराणि कर्माणि यस्य तस्य (सूनोः) प्राणिगर्भविमोचकस्य ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यस्याऽस्य सुप्रतीकस्य सूनोरग्नेरूर्ध्वाः समिध ऊर्ध्वा द्युमत्तमा शुक्रा शोचींषि भवन्ति तं विजानीत ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! योऽयमूर्ध्वगन्ता सर्वदर्शनहेतुः सर्वेषां पालननिमित्तोऽग्निरस्ति, तं विज्ञाय कार्याणि सततं साध्नुत ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो ऊर्ध्वगामी, सर्वप्रकाशक, सर्वरक्षक आहे त्या अग्नीला जाणा व त्याप्रमाणे कार्य करा.