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उद्व॒यन्तम॑स॒स्परि॒ स्वः᳖ पश्य॑न्त॒ऽ उत्त॑रम्। दे॒वं दे॑व॒त्रा सूर्य॒मग॑न्म॒ ज्योति॑रुत्त॒मम् ॥१० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत्। व॒यम्। तम॑सः। परि॑। स्व᳖रिति॒ स्वः᳖। पश्य॑न्तः। उत्त॑र॒मित्यु॑त्ऽत॑रम्। दे॒वम्। दे॒व॒त्रेति॑ देव॒ऽत्रा। सूर्य॑म्। अग॑न्म। ज्योतिः॑। उ॒त्त॒ममित्यु॑त्ऽत॒मम् ॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:10


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर की उपासना के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (वयम्) हम लोग (तमसः) अन्धकार से पृथक् वर्तमान (ज्योतिः) प्रकाशमान सूर्यमण्डल को (पश्यन्तः) देखते हुए (स्वः) सुख के साधक (उत्तरम्) सब लोगों को दुःख से पार उतारनेवाले (देवत्रा) दिव्य पदार्थों वा विद्वानों में वर्त्तमान (उत्तमम्) अतिश्रेष्ठ (सूर्यम्) चराचर के आत्मा (देवम्) प्रकाशमान जगदीश्वर को (परि, उत्, अगन्म) सब ओर से उत्कर्षपूर्वक प्राप्त हों, वैसे उस ईश्वर को तुम लोग भी प्राप्त होओ ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य सूर्य के समान अविद्यारूप अन्धकार से पृथक् हुए स्वयं प्रकाशित, बड़े देवता, सबसे उत्तम, सब के अन्तर्यामी परमात्मा की ही उपासना करते हैं, वे मुक्ति के सुख को भी अवश्य निर्विघ्न प्रीतिपूर्वक प्राप्त होते हैं। १० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरोपासनाविषयमाह ॥

अन्वय:

(उत्) उत्कर्षे (वयम्) (तमसः) अन्धकारात् पृथग् वर्त्तमानम् (परि) सर्वतः (स्वः) सुखसाधकम् (पश्यन्तः) प्रेक्षमाणाः (उत्तरम्) सर्वेषां लोकानामुत्तारकम् (देवम्) द्योतमानम् (देवत्रा) देवेषु वर्त्तमानम् (सूर्यम्) चराऽचरात्मानम् (अगन्म) प्राप्नुयाम (ज्योतिः) प्रकाशमानम् (उत्तमम्) अतिश्रेष्ठम् ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं तमसः पृथग्भूतं ज्योतिः सवितृमण्डलं पश्यन्तः स्वरुत्तरं देवत्रोत्तमं सूर्यं जगदीश्वरं देवं पर्युदगन्म तथा यूयमपि प्राप्नुत ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः सूर्यमिवाऽविद्यान्धकारात् पृथग्भूतं स्वप्रकाशं महादेवं सर्वोत्कृष्टं सर्वान्तर्यामिणं परमात्मानमेवोपासते ते मुक्तिसुखमपि लभन्ते ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे सूर्याप्रमाणे अविद्यारूपी अंधःकारापासून दूर होऊन स्वयंप्रकाशित, महादेव, सर्वोत्तम, सर्वांतर्यामी परमेश्वराची उपासना करता ती निर्विघ्नपणे मुक्तीचे सुख भोगू शकतात.