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तवा॒यꣳ सोम॒स्त्वमेह्य॒र्वाङ् श॑श्वत्त॒मꣳ सु॒मना॑ऽअ॒स्य पा॑हि। अ॒स्मिन् य॒ज्ञे ब॒र्हिष्या नि॒षद्या॑ दधि॒ष्वेमं ज॒ठर॒ऽइन्दु॑मिन्द्र ॥२३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तव॑। अ॒यम्। सोमः॑। त्वम्। आ। इ॒हि॒। अ॒र्वाङ्। श॒श्व॒त्त॒ममिति॑ शश्वत्ऽत॒मम्। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। अ॒स्य। पा॒हि॒। अ॒स्मिन्। य॒ज्ञे। ब॒र्हिषि॑। आ। नि॒षद्य॑। नि॒सद्येति॑ नि॒ऽसद्य॑। द॒धि॒ष्व। इ॒मम्। ज॒ठरे॑। इन्दु॑म्। इ॒न्द्र॒ ॥२३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:26» मन्त्र:23


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) परम ऐश्वर्य की इच्छावाले विद्वन् ! जो (तव) आप का (अयम्) यह (सोमः) ऐश्वर्य का योग है, उस को (त्वम्) आप (आ, इहि) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये (सुमनाः) धर्म कार्य्यों में प्रसन्नचित्त (अर्वाङ्) सन्मुख प्राप्त हुए (अस्य) इस अपने आत्मा के (शश्वत्तमम्) अधिकतर अनादि धर्म की (पाहि) रक्षा कीजिये (अस्मिन्) इस (बर्हिषि) उत्तम (यज्ञे) प्राप्त होने योग्य व्यवहार में (निषद्य) निरन्तर स्थित हो के (जठरे) जाठराग्नि में (इमम्) इस प्रत्यक्ष (इन्दुम्) रोगनाशक ओषधियों के रस को (आ, दधिष्व) अच्छे प्रकार धारण कीजिये ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग सब के साथ सदा सन्मुखता को प्राप्त होके प्रसन्नचित्त हुए सनातन धर्म तथा विज्ञान का उपदेश किया करें, पथ्य अन्न आदि का भोजन करें और सदा पुरुषार्थ में प्रवृत्त रहें ॥२३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(तव) (अयम्) (सोमः) ऐश्वर्ययोगः (त्वम्) (आ, इहि) समन्तात् प्राप्नुहि (अर्वाङ्) आभिमुख्यं प्राप्तः (शश्वत्तमम्) अतिशयेन शश्वदनादिभूतम् (सुमनाः) धर्मकार्ये प्रसन्नमनाः (अस्य) (पाहि) (अस्मिन्) (यज्ञे) सङ्गन्तव्ये (बर्हिषि) उत्तमे साधुनि (आ) (निषद्य) नितरां स्थित्वा। अत्र ‘संहितायाम्’ [अ०६.३.११४] इति दीर्घः। (दधिष्व) धर (इमम्) (जठरे) उदराग्नौ (इन्दुम्) रोगहरौषधिरसम् (इन्द्र) परमैश्वर्यमिच्छो ॥२३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र विद्वन् ! यस्तवायं सोमोऽस्ति तं त्वमेहि सुमना अर्वाङ् सन्नस्य शश्वत्तमं पाहि। अस्मिन् बर्हिषि यज्ञे निषद्य जठर इममिन्दुं चादधिष्व ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वांसः सर्वैः सहाभिमुख्यं प्राप्य प्रसन्नमनसः सन्तः सनातनं धर्मं विज्ञानञ्चोपदिशेयुः पथ्यमन्नादि सेवेरन् सदैव पुरुषार्थे प्रयतेरँश्च ॥२३।
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान लोकांनी सर्वांसमोर प्रसन्नचित्त राहून सनातन् धर्म व विज्ञान यांचा उपदेश करावा. पथ्यकारक अन्नाचे भोजन करावे व सदैव पुरुषार्थ करावा.