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अ॒भि य॒ज्ञं गृ॑णीहि नो॒ ग्नावो॒ नेष्टः॒ पिब॑ऽऋ॒तुना॑। त्वहि र॑त्न॒धा ऽअसि॑ ॥२१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि। य॒ज्ञम्। गृ॒णी॒हि॒। नः॒। ग्नावः॑। नेष्ट॒रिति॒ नेष्टः॑। पिब॑। ऋ॒तुना॑। त्वम्। हि। र॒त्न॒धा इति॑ रत्न॒ऽधाः। असि॑ ॥२१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:26» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन विद्वान् हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ग्नावः) प्रशस्त वाणीवाले (नेष्टः) नायक जन आप (ऋतुना) वसन्त आदि ऋतु के साथ (नः) हमारे (यज्ञम्) उत्तम व्यवहार की (अभि, गृणीहि) सन्मुख स्तुति कीजिये, जिस कारण (त्वं, हि) तुम ही (रत्नधाः) प्रसन्नता के हेतु वस्तु के धारणकर्त्ता (असि) हो इससे उत्तम ओषधियों के रसों को (पिब) पी ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - जो अच्छी शिक्षा को प्राप्त वाणी के सङ्गत व्यवहार को जानने की इच्छा करें, वे विद्वान् होवें ॥२१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

के विद्वांसो भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

(अभि) आभिमुख्ये (यज्ञम्) प्रशस्तव्यवहारम् (गृणीहि) स्तुहि (नः) अस्माकम् (ग्नावः) प्रशस्तवाग्मिन्। ग्नेति वाङ्नामसु पठितम् ॥ (निघं०१.११) (नेष्टः) नेतः (पिब) (ऋतुना) वसन्ताद्येन सह (त्वम्) (हि) (रत्नधाः) रमणीयवस्तुधर्त्ता (असि) ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे ग्नावो नेष्टस्त्वमृतुना सह नो यज्ञमभि गृणीहि यतस्त्वं हि रत्नधा असि तस्मात् सदोषधिरसान् पिब ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - ये सुशिक्षिताया वाचः सङ्गतं व्यवहारं ज्ञातुमिच्छेयुस्ते विद्वांसो भवेयुः ॥२१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सुशिक्षित असून, वाणीचा व्यवहार जाणतात ते विद्वान असतात.