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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (गिरीणाम्) पर्वतों के (उपह्वरे) निकट (च) और (नदीनाम्) नदियों के (सङ्गमे) मेल में योगाभ्यास से ईश्वर की और विचार से विद्या की उपासना करे, वह (धिया) उत्तम बुद्धि वा कर्म से युक्त (विप्रः) विचारशील बुद्धिमान् (अजायत) होता है ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् लोग पढ़ के एकान्त में विचार करते हैं, वे योगियों के तुल्य उत्तम बुद्धिमान् होते हैं ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(उपह्वरे) निकटे (गिरीणाम्) शैलानाम् (सङ्गमे) मेलने (च) (नदीनाम्) (धिया) प्रज्ञया कर्मणा वा (विप्रः) मेधावी। विप्र इति मेधाविनाम ॥ (निघं०३.१५) (अजायत) जायते ॥१५ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - यो मनुष्यो गिरीणामुपह्वरे नदीनां च सङ्गमे योगेनेश्वरं विचारेण विद्यां चोपासीत स धिया विप्रो अजायत ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसः पठित्वैकान्ते विचारयन्ति ते योगिन इव प्राज्ञा भवन्ति ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान लोक अध्ययन करून एकांतात विचार करतात ते योग्यप्रमाणे बुद्धिमान असतात.