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ऋ॒तव॑स्ते य॒ज्ञं वित॑न्वन्तु॒ मासा॑ र॒क्षन्तु॑ ते॒ हविः॑। सं॒व॒त्स॒रस्ते॑ य॒ज्ञं द॑धातु नः प्र॒जां च॒ परि॑ पातु नः ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋ॒तवः॑। ते॒। य॒ज्ञम्। वि। त॒न्व॒न्तु॒। मासाः॑। र॒क्षन्तु॑। ते॒। हविः॑। सं॒व॒त्स॒रः। ते॒। य॒ज्ञम्। द॒धा॒तु। नः॒। प्र॒जामिति॑ प्र॒ऽजाम्। च॒। परि॑। पा॒तु॒। नः॒ ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:26» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (ते) आप के (यज्ञम्) सत्कार आदि व्यवहार को (ऋतवः) वसन्तादि ऋतु (वि, तन्वन्तु) विस्तृत करें (ते) आप के (हविः) होमने योग्य वस्तु की (मासाः) कार्तिक आदि महीने (रक्षन्तु) रक्षा करें (ते) आप के (यज्ञम्) यज्ञ को (नः) हमारा (संवत्सरः) वर्ष (दधातु) पुष्ट करे (च) और (नः) हमारी (प्रजाम्) प्रजा की (परि, पातु) सब ओर से आप रक्षा करो ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् मनुष्यों को योग्य है कि सब सामग्री से विद्यावर्द्धक व्यवहार को सदा बढ़ावें और न्याय से प्रजा की रक्षा किया करें ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ऋतवः) वसन्ताद्याः (ते) तव (यज्ञम्) सत्कारादिव्यवहारम्। (वि) (तन्वन्तु) विस्तृणन्तु (मासाः) कार्त्तिकादयः (रक्षन्तु) (ते) तव (हविः) होतव्यं वस्तु (संवत्सरः) (ते) तव (यज्ञम्) (दधातु) (नः) अस्माकम् (प्रजाम्) (च) (परि) (पातु) रक्षतु (नः) अस्माकम् ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वँस्ते यज्ञमृतवो वितन्वन्तु ते हविर्मासा रक्षन्तु ते यज्ञं नः संवत्सरो दधातु नः प्रजां च परिपातु ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिर्मनुष्यैः सर्वाभिः सामग्रीभिर्विद्यावर्द्धको व्यवहारः सदा वर्द्धनीयो न्यायेन प्रजाश्च पालनीयाः ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान माणसांनी सर्व तऱ्हेने विद्यावर्धक व्यवहार वाढवावा व न्यायाने प्रजेचे रक्षण करावे.