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एह्यू॒ षु ब्रवा॑णि॒ तेऽग्न॑ऽ इ॒त्थेत॑रा॒ गिरः॑। ए॒भिर्व॑र्द्धास॒ऽइन्दु॑भिः ॥१३ ॥

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पद पाठ

आ। इ॒हि॒। ऊँ॒ इत्यूँ॑। सु। ब्रवा॑णि। ते॒। अग्ने॑। इ॒त्था। इत॑राः। गिरः॑। ए॒भिः। व॒र्द्धा॒से॒। इन्दु॑भि॒रितीन्दु॑ऽभिः ॥१३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:26» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) प्रकाशित बुद्धिवाले विद्वन् ! मैं (इत्था) इस हेतु से (ते) आप के लिये (इतराः) जिन को तुम ने नहीं जाना है, उन (गिरः) वाणियों का (सु, ब्रवाणि) सुन्दर प्रकार से उपदेश करूँ कि जिस से आप इन वाणियों को (आ, इहि) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये (उ) और (एभिः) इन (इन्दुभिः) जलादि पदार्थों से (वर्द्धासे) वृद्धि को प्राप्त हूजिये ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - जिस शिक्षा से विद्यार्थी लोग विज्ञान से बढ़ें, उसी शिक्षा का विद्वान् लोग उपदेश किया करें ॥१३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्भिः किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(आ) समन्तात् (इहि) प्राप्नुहि (उ) वितर्के (सु) शोभने (ब्रवाणि) उपदिशेयम् (ते) तुभ्यम् (अग्ने) प्रकाशितप्रज्ञ (इत्था) अस्माद्धेतोः (इतराः) त्वयाऽज्ञाताः (गिरः) वाचः (एभिः) (वर्द्धासे) वृद्धो भव (इन्दुभिः) जलादिभिः ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्नेऽहमित्था त इतरा गिरः सु ब्रवाणि यतस्त्वमेता एहि उ एभिरिन्दुभिर्वर्द्धासे ॥१३।
भावार्थभाषाः - यया शिक्षया विद्यार्थिनो विज्ञानेन वर्द्धेरँस्तामेव विद्वांस उपदिशेयुः ॥१३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या शिक्षणाने विद्यार्थ्यांचे विज्ञान वाढते. त्याच शिक्षणाचा विद्वान लोकांनी उपदेश करावा.