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यद्वाहि॑ष्ठं॒ तद॒ग्नये॑ बृ॒हद॑र्च विभावसो। महि॑षीव॒ त्वद्र॒यिस्त्वद्वाजा॒ऽउदी॑रते ॥१२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। वाहि॑ष्ठम्। तत्। अ॒ग्नये॑। बृ॒हत्। अ॒र्च॒। वि॒भा॒व॒सो॒ इति॑ विभऽवसो। महि॑षी॒वेति॒ महि॑षीऽइव। त्वत्। र॒यिः त्वत्। वाजाः॑। उत्। ई॒र॒ते॒ ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:26» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह रानी क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (विभावसो) प्रकाशित धनवाले विद्वन् ! (अग्नये) अग्नि के लिये (यत्) जो (बृहत्) बड़ा और (वाहिष्ठम्) अत्यन्त पहुँचाने हारा है, उस का (अर्च) सत्कार करो (तत्) उस का हम भी सत्कार करें (महिषीव) और रानी के समान (त्वत्) तुम से (रयिः) धन और (त्वत्) तुम से (वाजाः) अन्न आदि पदार्थ (उत्, ईरते) भी प्राप्त होते हैं, उन आप का हम लोग सत्कार करें ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे रानी सुख पहुँचाती और बहुत धन देनेवाली होती है, वैसे ही राजा के समीप से सब लोग धन और अन्य उत्तम-उत्तम वस्तुओं को पावें ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा राज्ञी किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

(यत्) (वाहिष्ठम्) अतिशयेन वाहयितारम् (तत्) (अग्नये) पावकाय (बृहत्) महत् (अर्च) सत्कुरु (विभावसो) प्रकाशितधन (महिषीव) यथा राज्ञी तथा (त्वत्) तव सकाशात् (रयिः) धनम् (त्वत्) (वाजाः) अन्नादीनि (उत्) अपि (ईरते) प्राप्नुवन्ति ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विभावसो अग्नये यद् बृहद्वाहिष्ठमस्ति तदर्च तद्वयमप्यर्चेम महिषीव त्वद्रयिस्त्वद्वाजाश्चोदीरते तं वयं सत्कुर्याम ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - यथा राज्ञी सुखप्रापिका महाधनप्रदा भवति तथैव राज्ञः सकाशात् सर्वे धनमन्यान्युत्तमानि वस्तूनि च प्राप्नुयुः ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे राणी सर्वांना धन देऊन संतुष्ट करते तसे राजाकडून सर्व लोकांनी धन व इतर उत्तम वस्तू प्राप्त कराव्यात.