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विधृ॑तिं॒ नाभ्या॑ घृ॒तꣳरसे॑ना॒पो यू॒ष्णा मरी॑चीर्वि॒प्रुड्भि॑र्नीहा॒रमू॒ष्मणा॑ शी॒नं वस॑या॒ प्रुष्वा॒ऽ अश्रु॑भिर्ह्रा॒दुनी॑र्दू॒षीका॑भिर॒स्ना रक्षा॑सि चि॒त्राण्यङ्गै॒र्नक्ष॑त्राणि रू॒पेण॑ पृथि॒वीं त्व॒चा जु॑म्ब॒काय॒ स्वाहा॑ ॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विधृ॑ति॒मिति॒ विऽधृ॑तिम्। नाभ्या॑। घृ॒तम्। रसे॑न। अ॒पः। यू॒ष्णा। मरी॑चीः। वि॒प्रुड्भि॒रिति॑ वि॒प्रुट्ऽभिः॑। नी॒हा॒रम्। ऊ॒ष्मणा॑। शी॒नम्। वस॑या। प्रुष्वाः॑। अश्रु॑भि॒रित्यश्रु॑ऽभिः। ह्ना॒दु॒नीः॑। दू॒षीका॑भिः। अ॒स्ना। रक्षा॑ꣳसि। चि॒त्राणि॑। अङ्गैः॑। नक्ष॑त्राणि। रू॒पेण॑। पृ॒थि॒वीम्। त्व॒चा। जु॒म्ब॒काय॑। स्वाहा॑ ॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:9


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर किससे क्या होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग (नाभ्या) नाभि से (विधृतिम्) विशेष करके धारण को (घृतम्) घी को (रसेन) रस से (अपः) जलों को (यूष्णा) क्वाथ किये रस से (मरीचीः) किरणों को (विप्रुड्भिः) विशेषकर पूरण पदार्थों से (नीहारम्) कुहर को (ऊष्मणा) गरमी से (शीनम्) जमे हुए घी को (वसया) निवासहेतु जीवन से (प्रुष्वाः) जिनसे सींचते हैं, उन क्रियाओं को (अश्रुभिः) आँसुओं से (ह्रादुनीः) शब्दों की अप्रकट उच्चारण-क्रियाओं को (दूषीकाभिः) विकाररूप क्रियाओं से (चित्राणि) चित्र-विचित्र (रक्षांसि) पालना करने योग्य (अस्ना) रुधिरादि पदार्थों को (अङ्गैः) अङ्गों और (रूपेण) रूप से (नक्षत्राणि) तारागणों को और (त्वचा) मांस रुधिर आदि को ढाँपनेवाली खाल आदि से (पृथिवीम्) पृथिवी को जानकर (जुम्बकाय) अतिवेगवान् के लिये (स्वाहा) सत्य वाणी का प्रयोग अर्थात् उच्चारण करो ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को धारणा आदि क्रियाओं से खोटे आचरण और रोगों की निवृत्ति और सत्यभाषण आदि धर्म के लक्षणों का विचार कर प्रवृत्त करना चाहिये ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः केन किं भवतीत्याह ॥

अन्वय:

(विधृतिम्) विशेषेण धारणाम् (नाभ्या) शरीरस्य मध्यावयवेन (घृतम्) आज्यम् (रसेन) (अपः) जलानि (यूष्णा) क्वथितेन रसेन (मरीचीः) किरणान् (विप्रुड्भिः) विशेषेण पूर्णैः (नीहारम्) प्रभातसमये सोमवद्वर्त्तमानम् (ऊष्मणा) उष्णतया (शीनम्) संकुचितं घृतम् (वसया) निवासहेतुना जीवनेन (प्रुष्वाः) पुष्णन्ति सिञ्चन्ति याभिस्ताः (अश्रुभिः) रोदनैः (ह्रादुनीः) शब्दानामव्यक्तोच्चारणक्रियाः (दूषीकाभिः) विक्रियाभिः (अस्ना) रुधिराणि (रक्षांसि) पालयितव्यानि (चित्राणि) अद्भुतानि (अङ्गैः) अवयवैः (नक्षत्राणि) (रूपेण) (पृथिवीम्) भूमिम् (त्वचा) मांसरुधिरादीनां संवरकेणेन्द्रियेण (जुम्बकाय) अतिवेगवते (स्वाहा) सत्यां सत्यां वाचम् ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं नाभ्या विधृतिं घृतं रसेनापो यूष्णा मरीचीर्विप्रुड्भिर्नीहारमूष्मणा शीनं वसया प्रुष्वा अश्रुभिर्ह्रादुनीर्दूषीकाभिश्चित्राणि रक्षांस्यनाङ्गै रूपेण नक्षत्राणि त्वचा पृथिवीं विदित्वा जुम्बकाय स्वाहा प्रयुङ्ग्ध्वम् ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्धारणादिभिः कर्मभिर्दुर्व्यसनानि रोगाँश्च निवार्य्य सत्यभाषणादिधर्मलक्षणानि विचार्य्य प्रवर्त्तनीयम् ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी (योग) धारणा वगैरे क्रिया करून असत्याचरण व रोग यांची निवृत्ती करावी आणि सत्यभाषण इत्यादी धर्माच्या लक्षणाचा विचार करून त्यात प्रवृत्त व्हावे.