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यदश्वा॑य॒ वास॑ऽउपस्तृ॒णन्त्य॑धीवा॒सं या हिर॑ण्यान्यस्मै। स॒न्दान॒मर्व॑न्तं॒ पड्वी॑शं प्रि॒या दे॒वेष्वा या॑मयन्ति ॥३९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। अश्वा॑य। वासः॑। उ॒प॒स्तृ॒णन्तीत्यु॑पऽस्तृ॒णन्ति॑। अ॒धी॒वा॒सम्। अ॒धि॒वा॒समित्य॑धिऽवा॒सम्। या। हिर॑ण्यानि। अ॒स्मै॒। स॒न्दान॒मिति॑ स॒म्ऽदान॑म्। अर्व॑न्तम्। पड्वी॑शम्। प्रि॒या। दे॒वेषु॑। आ। या॒म॒य॒न्ति॒। य॒म॒य॒न्तीति॑ यमयन्ति ॥३९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:39


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! आप (अस्मै) इस (अश्वाय) घोड़े के लिए (यत्) जो (वासः) वस्त्र (अधीवासम्) चारजामा (सन्दानम्) मुहेरा आदि और (या) जिन (हिरण्यानि) सुवर्ण के बनाये हुए आभूषणों को (उपस्तृणन्ति) ढापते वा जिस (पड्वीशम्) पैरों से प्रवेश करते और (अर्वन्तम्) जाते हुए घोड़े को (आ, यामयन्ति) अच्छे प्रकार नियम में रखते हैं, वे सब पदार्थ और काम (देवेषु) विद्वानों में (प्रिया) प्रीति देनेवाले हों ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य घोड़े आदि पशुओं की यथावत् रक्षा करके उपकार लेवें तो बहुत कार्यों की सिद्धि से उपकारयुक्त हों ॥३९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यत्) (अश्वाय) (वासः) वस्त्रम् (उपस्तृणन्ति) आच्छादयन्ति (अधीवासम्) उपरि स्थापनीयम् (या) यानि (हिरण्यानि) हिरण्यैर्निर्मितानि आभूषणादीनि (अस्मै) (सन्दानम्) शिरोबन्धनादि (अर्वन्तम्) गच्छन्तम् (पड्वीशम्) पद्भिर्विशन्तम् (प्रिया) प्रियाणि (देवेषु) विद्वत्सु (आ) समन्तात् (यामयन्ति) नियमयन्ति ॥३९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्या ! भवन्तोऽस्मा अश्वाय यद्वासोऽधीवासं सन्दानं या हिरण्यान्युपस्तृणन्ति यं पड्वीशमर्वन्तमायामयन्ति, तानि सर्वाणि देवेषु प्रिया सन्तु ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - यदि मनुष्या अश्वादीन् पशून् यथावद् रक्षयित्वोपकारं गृह्णीयुस्तर्हि बहुकार्यसिद्ध्युपकृताः स्युः ॥३९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे घोडे वगैरे पशूंचे रक्षण करून त्यांचा उपयोग करून घेतात ती खूप कार्य करतात म्हणून उपकारक असतात.