वांछित मन्त्र चुनें

उप॒ प्रागा॑त्सु॒मन्मे॑ऽधायि॒ मन्म॑ दे॒वाना॒माशा॒ऽउप॑ वी॒तपृ॑ष्ठः। अन्वे॑नं॒ विप्रा॒ऽऋष॑यो मदन्ति दे॒वानां॑ पु॒ष्टे च॑कृमा सु॒बन्धु॑म् ॥३० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उप॑। प्र। अ॒गा॒त्। सु॒मदि॑ति॑ सु॒ऽमत्। मे॒। अ॒धा॒यि॒। मन्म॑। दे॒वाना॑म्। आशाः॑। उप॑। वी॒तपृ॑ष्ठ॒ इति॑ वी॒तऽपृ॑ष्ठः। अनु॑। ए॒न॒म्। विप्राः॑। ऋष॑यः। म॒द॒न्ति॒। दे॒वाना॑म्। पु॒ष्टे। च॒कृ॒म॒। सु॒बन्धु॒मिति॑ सु॒ऽबन्धु॑म् ॥३० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:30


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन किनसे क्या लेवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जिसने (सुमत्) आप ही (देवानाम्) विद्वानों का (वीतपृष्ठः) जिस का पिछला भाग व्याप्त वह उत्तम व्यवहार (अधायि) धारण किया वा जिससे इनके और (मे) मेरे (मन्म) विज्ञान को तथा (आशाः) दिशा-दिशान्तरों को (उप, प्र, अगात्) प्राप्त हो वा जिस (एनम्) इस प्रत्यक्ष व्यवहार के (अनु) अनुकूल (देवानाम्) विद्वानों के बीच (पुष्टे) पुष्ट बलवान् जन के निमित्त (ऋषयः) मन्त्रों का अर्थ जाननेवाले (विप्राः) धीरबुद्धि पुरुष (उप, मदन्ति) समीप होकर आनन्द को प्राप्त होते हैं, उस (सुबन्धुम्) सुन्दर भाइयोंवाले जन को हम लोग (चकृम) उत्पन्न करें ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वानों के समीप से उत्तम ज्ञान को पाके ऋषि होते हैं, वे सब को विज्ञान देने से पुष्ट करते हैं, जो परस्पर एक-दूसरे की उन्नति कर परिपूर्ण कामवाले होते हैं, वे जगत् के हितैषी होते हैं ॥३० ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः के केषां सकाशात् किं गृह्णीयुरित्याह ॥

अन्वय:

(उप) सामीप्ये (प्र) (अगात्) प्राप्नुयात् (सुमत्) स्वयम् (मे) मम (अधायि) ध्रियते (मन्म) विज्ञानम् (देवानाम्) विदुषाम् (आशाः) दिशः (उप) (वीतपृष्ठः) वीतं व्याप्तं पृष्ठं यस्य सः (अनु) (एनम्) (विप्राः) मेधाविनः (ऋषयः) मन्त्रार्थविदः (मदन्ति) कामयन्ते (देवानाम्) विदुषाम् (पुष्टे) पुष्टे जने (चकृम) कुर्याम। अत्र संहितायाम् [अ०६.३.११४] इति दीर्घः। (सुबन्धुम्) शोभना बन्धवो भ्रातरो यस्य तम् ॥३० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - येन सुमत्स्वयं देवानां वीतपृष्ठो यज्ञोऽधायि येनैतेषां मे च मन्माशाश्चोपप्रागाद्, यमेनमनुदेवानां पुष्टे ऋषयो विप्रा उपमदन्ति, तं सुबन्धुं वयं चकृम ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - ये विदुषां सकाशाद् विज्ञानं प्राप्यर्षयो भवन्ति, ते सर्वान् विज्ञानदानेन पोषयन्ति, येऽन्योन्यस्योन्नतिं विधाय सिद्धकामा भवन्ति, ते जगद्धितैषिणो जायन्ते ॥३० ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वानांकडून उत्तम ज्ञान प्राप्त करून ऋषी बनतात ते विशेष ज्ञानाने सर्वांना कणखर व पुष्ट बनवितात. जे परस्पर उन्नती करून परिपूर्ण काम करतात ते जगाचे हितकर्ते असतात.