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मा नो॑ मि॒त्रो वरु॑णोऽअर्य॒मायुरिन्द्र॑ऽऋभु॒क्षा म॒रुतः॒ परि॑ख्यन्। यद्वा॒जिनो॑ दे॒वजा॑तस्य॒ सप्तेः॑ प्रव॒क्ष्यामो॑ वि॒दथे॑ वी॒र्या᳖णि ॥२४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। नः॒। मि॒त्रः। वरु॑णः। अ॒र्य॒मा। आ॒युः। इन्द्रः॑। ऋ॒भु॒क्षाः। म॒रुतः॑। परि॑ऽख्यन्। यत्। वा॒जिनः॑। दे॒वजा॑त॒स्येति॑ दे॒वऽजा॑तस्य। सप्तेः॑। प्र॒व॒क्ष्याम॒ इति॑ प्रऽव॒क्ष्यामः॑। वि॒दथे॑। वी॒र्या᳖णि ॥२४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:24


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन हम लोगों के किस काम को न करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जैसे (मित्रः) प्राण के समान मित्र (वरुणः) उदान के समान श्रेष्ठ (अर्यमा) और न्यायाधीश के समान नियम करनेवाला (इन्द्रः) राजा तथा (ऋभुक्षाः) महात्मा (मरुतः) जन (नः) हम लोगों की (आयुः) आयुर्दा को (मा) मत (परिख्यन्) विनाश करावें, जिस से हम लोग (देवजातस्य) दिव्यगुणों से प्रसिद्ध (वाजिनः) वेगवान् (सप्तेः) घोड़ा के समान उत्तम वीर पुरुष के (विदथे) युद्ध में (यत्) जिन (वीर्याणि) बलों को (प्रवक्ष्यामः) कहें, उन का मत विनाश करावें, वैसा आप लोग उपदेश करें ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सब मनुष्य अपने बलों को बढ़ाना चाहें, वैसे औरों के भी बल को बढ़ाने की इच्छा करें ॥२४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः केऽस्माकं किन्न कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (मित्रः) प्राण इव सखा (वरुणः) उदान इव श्रेष्ठः (अर्यमा) न्यायाधीश इव नियन्ता (आयुः) जीवनम् (इन्द्रः) राजा (ऋभुक्षाः) महान्तः (मरुतः) मनुष्याः (परिख्यन्) वर्जयेयुः (यत्) यानि (वाजिनः) वेगवतः (देवजातस्य) देवैर्दिव्यैर्गुणैः प्रसिद्धस्य (सप्तेः) अश्वस्य (प्रवक्ष्यामः) प्रवदिष्यामः (विदथे) युद्धे (वीर्याणि) बलानि ॥२४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वांसोः यथा मित्रो वरुणोऽर्यमेन्द्रश्च ऋभुक्षा मरुतो न आयुर्मा परिख्यन्। येन वयं देवजातस्य वाजिनः सप्तेरिव विदथे यद्वीर्याणि प्रवक्ष्यामस्तानि मा परिख्यन्। तथा यूयमुपदिशत ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सर्वे मनुष्याः स्वेषां बलानि वर्द्धयितुमिच्छेयुस्तथैवान्येषामपि वर्द्धयितुमिच्छन्तु ॥२४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी सर्व माणसे आपली शक्ती वाढवू इच्छितात तसे इतरांच्या शक्तीलाही वाढविण्याची इच्छा धरावी.