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तन्नो॒ वातो॑ मयो॒भु वा॑तु भेष॒जं तन्मा॒ता पृ॑थि॒वी तत्पि॒ता द्यौः। तद्ग्रावा॑णः सोम॒सुतो॑ मयो॒भुव॒स्तद॑श्विना शृणुतं धिष्ण्या यु॒वम् ॥१७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। नः॒। वातः॑। म॒यो॒भ्विति॑। मयः॒ऽभु। वा॒तु॒। भे॒ष॒जम्। तत्। मा॒ता। पृ॒थि॒वी। तत्। पि॒ता। द्यौः। तत्। ग्रावा॑णः। सो॒म॒सुत॒ इति॑ सोम॒ऽसुतः॑। म॒यो॒भुव॒ इति॑ मयः॒ऽभुवः॑। तत्। अ॒श्वि॒ना॒। शृ॒णु॒त॒म्। धि॒ष्ण्या॒। यु॒वम् ॥१७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:17


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) पढ़ाने और पढ़ने हारे सज्जनो ! (धिष्ण्या) भूमि के समान धारण करनेवाले (युवम्) तुम दोनों हम लोगों ने जो पढ़ा है, उस को (शृणुतम्) सुनो। जैसे (नः) हम लोगों के लिये (वातः) पवन (तत्) उस (मयोभु) सुख करने हारी (भेषजम्) ओषधि की (वातु) प्राप्ति करे (तत्) उस ओषधि को (माता) मान्य देनेवाली (पृथिवी) विस्तारयुक्त भूमि तथा (तत्) उस को (पिता) पालना का हेतु (द्यौः) सूर्यमण्डल प्राप्त करे तथा (तत्) उस को (सोमसुतः) ओषधि और ऐश्वर्य को उत्पन्न करने और (मयोभुवः) सुख की भावना कराने हारे (ग्रावाणः) मेघ प्राप्त करें (तत्) यह सब व्यवहार तुम्हारे लिये भी होवे ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - जिसकी पृथिवी के समान माता और सूर्य के समान पिता हो, वह सब ओर से कुशली सुखी होकर सब को नीरोग और चतुर करे ॥१७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः का किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

(तत्) (नः) अस्मभ्यम् (वातः) वायुः (मयोभु) सुखकारि (वातु) प्रापयतु (भेषजम्) औषधम् (तत्) (माता) मान्यप्रदा (पृथिवी) विस्तीर्णा भूमिः (तत्) (पिता) पालनहेतुः (द्यौः) सूर्यः (तत्) (ग्रावाणः) मेघाः (सोमसुतः) ओषध्यैश्वर्योत्पादकाः (मयोभुवः) सुखं भावुकाः (तत्) (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (शृणुतम्) (धिष्ण्या) भूमिवद्धर्त्तारौ (युवम्) युवाम् ॥१७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विना ! धिष्ण्या युवमस्माभिरधीतं शृणुतं यथा नो वातस्तन्मयोभु भेषजं वातु तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौर्वातु तत्सोमसुतो मयोभुवो ग्रावाणो वान्तु तद्युष्मभ्यमप्यस्तु ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - यस्य पृथिवीव माता द्यौरिव पिता भवेत्, स सर्वतः कुशलीभूत्वा सर्वानरोगाञ्चतुरान् कुर्यात्॥१७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याची माता पृथ्वीप्रमाणे व पिता सूर्याप्रमाणे असेल त्याने सर्व ठिकाणी व्यवहारकुशल असावे व सुखी होऊन सर्वांना निरोगी व चतुर बनवावे.