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आ नो॑ भ॒द्राः क्रत॑वो यन्तु वि॒श्वतोऽद॑ब्धासो॒ऽअप॑रीतासऽउ॒द्भिदः॑। दे॒वा नो॒ यथा॒ सद॒मिद् वृ॒धेऽअस॒न्नप्रा॑युवो रक्षि॒तारो॑ दि॒वेदि॑वे ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। भ॒द्राः। क्रत॑वः। य॒न्तु॒। वि॒श्वतः॑। अद॑ब्धासः। अप॑रीतास॒ इत्यप॑रिऽइतासः। उ॒द्भिद॒ इत्यु॒त्ऽभिदः॑। दे॒वाः। नः॒। यथा॑। सद॑म्। इत्। वृ॒धे। अस॑न्। अप्रा॑युव॒ इत्यप्र॑ऽआयुवः। र॒क्षि॒तारः॑। दि॒वेदि॑व॒ऽइति॑ दि॒वेदि॑वे ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को किस की इच्छा करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जैसे (नः) हम लोगों को (विश्वतः) सब ओर से (भद्राः) कल्याण करनेवाले (अदब्धासः) जो विनाश को न प्राप्त हुए (अपरीतासः) औरों ने जो न व्याप्त किये अर्थात् सब कामों से उत्तम (उद्भिदः) जो दुःखों को विनाश करते वे (क्रतवः) यज्ञ वा बुद्धि बल (आ, यन्तु) अच्छे प्रकार प्राप्त हों (यथा) जैसे (नः) हम लोगों की (सदम्) उस सभा को कि जिसमें स्थित होते हैं, प्राप्त हुए (अप्रायुवः) जिन की अवस्था नष्ट नहीं होती, वे (देवाः) पृथिवी आदि पदार्थों के समान विद्वान् जन (इत्) ही (दिवेदिवे) प्रतिदिन (वृधे) वृद्धि के लिये (रक्षितारः) पालना करनेवाले (असन्) हों, वैसा आचरण करो ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को परमेश्वर के विज्ञान और विद्वानों के सङ्ग से बहुत बुद्धियों को प्राप्त होकर सब ओर से धर्म का आचरण कर नित्य सब की रक्षा करनेवाले होना चाहिये ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किमेष्टव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(आ) (नः) अस्मान् (भद्राः) कल्याणकराः (क्रतवः) यज्ञाः प्रज्ञा वा (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (विश्वतः) सर्वतः (अदब्धासः) अहिंसिताः (अपरीतासः) अन्यैरव्याप्ताः (उद्भिदः) य उद्भिन्दन्ति (देवाः) पृथिव्यादय इव विद्वांसः (नः) अस्माकम् (यथा) (सदम्) सीदन्ति प्राप्नुवन्ति यस्यां ताम् (इत्) एव (वृधे) वृद्धये (असन्) भवन्तु (अप्रायुवः) अनष्टायुषः (रक्षितारः) रक्षकाः (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वांसो ! यथा नोस्माऽन् विश्वतो भद्रा अदब्धासोऽपरीतास उद्भिदः क्रतव आ यन्तु, यथा नः सदं प्राप्ता अप्रायुवो देवा इद् दिवेदिवे वृधे रक्षितारोऽसन् तथाऽनुतिष्ठन्तु ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - सर्वैर्मनुष्यैः परमेश्वरस्य विज्ञानाद् विदुषां सङ्गेन पुष्कलाः प्रज्ञाः प्राप्य सर्वतो धर्ममाचर्य नित्यं सर्वेषां रक्षकैर्भवितव्यम् ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या सर्व माणसांनी विद्वानांच्या संगतीने परमेश्वरासंबंधी विशेष ज्ञान प्राप्त करावे व प्रखर बुद्धी प्राप्त करून धर्माचे आचरण करावे व सर्वांचे रक्षण करावे.