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यस्ये॒मे हि॒मव॑न्तो महि॒त्वा यस्य॑ समु॒द्रꣳ र॒सया॑ स॒हाहुः। यस्ये॒माः प्र॒दिशो॒ यस्य॑ बा॒हू कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥ ॥१२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्य॑। इ॒मे। हि॒मव॑न्त॒ इति॑ हि॒मऽव॑न्तः। म॒हि॒त्वेति॑ महि॒ऽत्वा। यस्य॑। स॒मु॒द्रम्। र॒सया॑। सह। आ॒हुः। यस्य॑। इ॒माः। प्र॒दिश॒ इति॑ प्र॒ऽदिशः॑। यस्य॑। बा॒हू इति॑ बा॒हू। कस्मै॑। दे॒वाय॑। ह॒विषा॑। वि॒धे॒म॒ ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सूर्य के वर्णन विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यस्य) जिस सूर्य के (महित्वा) बड़ेपन से (इमे) ये (हिमवन्तः) हिमालय आदि पर्वत आकर्षित और प्रकाशित हैं, (यस्य) जिस के (रसया) स्नेह के (सह) साथ (समुद्रम्) अच्छे प्रकार जिस में जल ठहरते हैं, उस अन्तरिक्ष को (आहुः) कहते हैं तथा (यस्य) जिस की (इमाः) इन दिशा और (यस्य) जिसकी (प्रदिशः) विदिशाओं को (बाहू) भुजाओं के समान वर्त्तमान कहते हैं, उस (कस्मै) सुखरूप (देवाय) मनोहर सूर्यमण्डल के लिये (हविषा) होम करने योग्य पदार्थ से हम लोग (विधेम) सेवन का विधान करें, ऐसे ही तुम भी विधान करो ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो सब से बड़ा, सब का प्रकाश करने और सब पदार्थों से रस का लेने हारा, जिस के प्रताप से दिशा और विदिशाओं का विभाग होता है, वह सूर्य्यलोक युक्ति के साथ सेवन करने योग्य है ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सूर्यवर्णनविषयमाह ॥

अन्वय:

(यस्य) (इमे) (हिमवन्तः) हिमालयादयः पर्वताः (महित्वा) महत्त्वेन (यस्य) (समुद्रम्) अन्तरिक्षम् (रसया) स्नेहनेन (सह) (आहुः) कथयन्ति (यस्य) (इमाः) (प्रदिशः) दिशो विदिशश्च (यस्य) (बाहू) भुजवद्वर्त्तमानाः (कस्मै) सुखरूपाय (देवाय) कमनीयाय (हविषा) हवनयोग्येन पदार्थेन (विधेम) परिचरेम ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यस्य सूर्यस्य महित्वा महत्त्वेनेमे हिमवन्त आकर्षिताः सन्ति, यस्य रसया सह समुद्रमाहुर्यस्येमा दिशो यस्य प्रदिशश्च बाहू इवाहुस्तस्मै कस्मै देवाय हविषा वयं विधेम, एवं यूयमपि विधत्त ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यः सर्वेभ्यो महान् सर्वप्रकाशकः सर्वेभ्यो रसस्य हर्त्ता यस्य प्रतापेन दिशामुपदिशां च विभागो भवति, स सवितृलोको युक्त्या सेवितव्यः ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो सर्वांना प्रकाश देणारा व सर्व पदार्थांचा रस शोषून घेणारा, तसेच ज्याच्या शक्तीमुळे दिशा व उपदिशांचे विभाग निर्माण होतात. त्या सूर्याचा युक्तीने उपयोग करून घ्यावा.